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जैन सुवोव गुटका।
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मेरे हात, तत्क्षण लेता पूछी, कौन बतावेगा आगम की; भिन्न २ करके कुंची ।। ५ ।। मैं तो ऐसी नहीं जानतो. छुटगा गुरु साथ । अतो स्वरमा की हुई माया, देखो दीनानाथ ॥ ६ ॥ वृथा मोह करे तूं चेतन, प्रभुजी हुवा निर्वाण । चौथमल कहे इन्द्रभूतिजी पाये केवल नाण :७॥ संवत् उन्नीसे साल चौरासी; जोधपुर के माई, दीपमालिका के दूज दिन, जोड़ सभा में गाई ।। ८॥ .
३६६ शिकार निषेध.
(त-पंजी मुंडे बोल.) दया नहीं लावेरे २ पापी नित उठके पाप कमायेरे , ॥ टेर । तृण भक्षी पे खड्ग चलाके, बहादुरी बतलावरे । बराबरी से अड़े जदी, मालुम होजावेरे ॥ १॥ निर अपरांधी पशु बिचारे, कहां पुकारूं जावरे । उन अनाथ पे छलसे ताक, बन्दूक चलावर ॥ २ ॥ थर थर कम्पै जीव बिचार, जिम तिम प्राण बचावरे । पत्थर जैसा करकं हृदय उन्हें मार गिरावेरे ॥ ३ ॥ मादा मरे पे बच्चै उनके, तड़फ तड़फ मर जावर । इसी पाप से श्रेणिक राजा, नर्क सिधा-.. वेरे ॥ ४ ॥ जोवे बाट जमराज वहां पर, कदी पामणो .. श्रावेरे । पापी जीव को पाप का बदुला, वो भुगतावरे ॥५॥ . ओठ तरह के घातिक परकट, मनुऋषि जितलावरे । पोछा