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जैन सुबोध गुटका।
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रखो भोड़ो॥३॥ अवतो मनुष्यों विषयासक्ति से प्रेम भाव को क्यों नहीं तोड़ो ॥ ४ ॥ चौममल रहे उत्तम जागे, पापी जन तो कर रह्यो जोड़ो ॥५॥
..२२२ सत्यसार,
(तर्जदादर) सुनो सुजान सत्य को यह कैसी बहार है । सत्य के पिना मनुष्य का जीना धिकार है ।। र ।। आना हुआ हरिश्चन्द्र का, गहा के तौर पर । रानी भी प्राई उस समय, पनघट पनिहार है ॥ सुनो० ॥ ९॥ पड़ी निगाह सनी क, अपने प्राणनाथ पर । तन में देख दूबले, करती विचार है ॥२॥ आंखों में जान
आ लगी, हाय ! या गजब हुया गुल हुस्न मह कहां गया, कहां वह दीदार है॥३॥ गुरु हीरालाल प्रसाद, चौममल हे सुनो। भपना हुए सो आपका, करता विचार है 11 ॥
“२२३ विश्वमोह निदर्शन. . . .(तर्ज-च ही तू ही याद भावरे दरद मैं) ... क्यों सू भूला. झूठ संसारा. झूठ. संसारा २ ॥ टर इन्द्रधनुष रैन को स्वमो, नैन खुले यह कहां गया सारा ॥क्यों ॥ ९॥रज्ज़ में.सर्प रजत सीप में। मृग प्यावत क्यों फिरे मारा ॥ २ ॥ सुपुप्ती जागृत अवस्था, पृथक् या