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जैन सुबोध गुटका ।
२२० तारा राणी. .
: [तर्ज-माड़] यह तारा रानी, प्राण से प्यारी होत जुदारीजी श्राज. । आवे याद हरवारी, लागी करारी, दिल मंझारीजी आजः ॥टेर।। या तारा प्यारी घणीरे, जूदी न रही लगार । सत्य के ऊपर या विकी, मैं वेची सदर बाजार ।। यह० ॥१॥ कल्प वृक्ष जान लियो थे, मैं तो निकल्यो आक । रन लियो कंकर हुओ काई मुझ सत्य ने तूं राख ॥ २ ॥ मुझ कारण संकट सहे तूं नाका सल नहीं लाय । धन्य २ जननी थायरी, कहूं कहां लग तांय ॥ ३ ॥ मुहरों की गठड़ी बांधतारे, हरिश्चन्द्र दियो रोय । इस काशी नगर के चौवटे, म्हारो सगो नहीं कोय ॥ ४ ॥ राज्य भी छूटो, पाट भी छूटो, छुटो धन भंडार । आखिर जाता यह भी छूटी, अब किसी का आधार ॥५॥ चौथमल कहे राजा हरिश्चन्द्र, धीरज को चितलाय । सत्य जोगे संकट टल, सख सम्पत फिर आय ॥ ६॥
२२१ चेतावनी . (तर्ज-तूही तूही याद श्रावेरे दरद में):
जोग बटाउं क्यों करे मोड़ो । क्यों करें मोड़ो २॥ र ।। बांगण जैसी जरा अवस्था, सुन्दर तन. पै कर रही दोड़ों ॥ जाग० ॥ १॥ शत्रु समान रोग कई मांति, प्रगट तो यह पटके फोड़ो ॥२ ।। फूटा घट से पानी निकले, ऐसे आयु हो