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जैन सुबोध गुटका।
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हुआ पावना ॥३॥ शान्ति नाम है,-परम जगत में, हां परम जगत में । सुख सम्पत दातार, विधन विरलावना ॥४॥ शान्ति जाप से, जहर हो अमृत, हां जहर हो अमृत । निधन हो धनवान ,फलेगा सब ही भावना ॥५॥ प्रातः उठ ओम, शांति जप तो, हां शांति जपे तो। रोग शोक मिटजाय, मुक्ति में फिर जावना ।। ६ ।। गुरु प्रसादे, चौथमल कहे, हां चौथमल कहे । मनका मनोरथ पूर, दर्शन की मेरे चावना ॥७॥
३५८ पयूषण पर्व (तर्ज-गुरुजी ने शान दियो भारी) पयंपण पर्व श्राज पाया के, सजनों ! पर्व आज, आया, के, मित्रों ! पर्व आज आया। सर्व जीवों की करो दया, यह संदेशा लाया टेका। अठों दिन तुम प्रेम धरीने बांयां और भायां । खूब करो धर्म ध्यान, खास सद्गुरु ने. फरमाया ॥१॥ त्यौहार शिरोमणि यही जगत में, तज दीजे परमाद । देव गुरु और धर्म आराधो, अनुभव रस आस्वाद ॥२॥ ज्ञान दर्शन. चारित्र पोपवा, पोपा करो जरूर । पद आवश्यक,संबर समाई,करे पाप हुवे दुर॥३॥ र.त्रि भोजन और नशा सव, छोड़ो वणजव्योपार । दरी लिलोती मिथ्या त्यागी, शील रतन लो धार ॥४॥ उत्तम करणी कीजे पुण्य से, मनुष्य जन्म पाया । वेला तला करो पचोला, पचखो