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जैन सुवोध गुटका।
(६१) .... ...................... अमृत पीजोए ॥ ७॥ गुरुकृपा से चौथमल कहे, सीता ज्यों धर्मपर रहिजोए ॥॥
६१ दिवानी युवानी. .
( तर्ज गजल. बिना रघुनाथ के देखे.) कवज करलो युवानी को, युवानी तो दिवानी है । फेल पैदा करे पलमें, खराबी की निशानी है ॥ टेर ॥ यही तारीफ
और वदनाम, नेकी बदी कराती है। कमाने में उड़ाने में, यही मुखिया युवानी है। कबंज० ॥ १ ॥ चढ़े है जोश जव इसका, उसे फिर कुछ नहीं सूझे । रा रहे ऐश असरत में, जमाने की घुमानी है ॥२॥ अगर हो दोस्त की सुन्दर, चाहे हो बंधु की प्यारी। भले विधवा कुमारी हो, नहीं आती गिलानी है॥३॥ सकल श्रृंगार क्रीड़ा का, चतुरता का यही घर है। सोदाई और खुदाई में, नहीं कोई इसक लानी है ॥ ४॥ लगे नहीं दिल प्रभु अन्दर, सदा ही घूमता रहवे । करे निलंग्ज तजे मर्याद, कई रोगों की खासी है ॥ ५॥ मेणरया के लिये मणिरथ, करा कत्ल भाई को। पट् ललिताङ्ग पुरुषों की, कराई इसने हानि है ॥ ६ ॥ युवानीरूपी बग्धो में, जुता है अश्व मन चंचल । ज्ञान लगाम से को, चौथमल की यह वानी है ॥ ७॥
१२ संतोप.
(तर्ज-गज) ___ सबर नर को प्राती नहीं, इस लोभ के परताप से। लाखों मनुष्य मारे गये, इस लोभ के परताप से । टर ॥ पाप का वालिद बड़ा, और जुल्म का सरताज है। वकील दोजख का बने, इस लोभ के परताप से ॥ सवर० ॥१॥ अगर शहन. शाह बने, सर्व मुल्क तावे में रहे। तो भी ख्वाहिश ना मिटे,