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जैन सुघोप गुटका.
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गुरु हीरालाल के परसाद, चौथमल कहे सुनो आलिम | शुभा उसका करो हरदम, विगानों से करता जा ॥ ५॥
२०८ योवन की अकड़ाई.
' (तजाखिर नार पराई है.) .. .. जो इतनी मस्ताई है, सब थोषन की अकड़ाई है ॥टेर ।। 'चढ़ता जय यौवन का पूर । निरखे तू दर्पण में नूर । टेडी पास मुकाई है। जो० ॥१॥ पोशाक सुदंर बदन सजावे । मूंछा घट दे बाल जमावें । घुमे इतर लगाई है. ॥ २: मात, पितासे करे लड़ाई । चले नार की आशा माई । नीति रीति विसराई है ॥ ३. मिलाराज का अब अधिकारी करें अन्याय और खेले शिकार । गरीबों की सुनता नाई॥४॥पीवे मंग मिनों संग जाई सिगरेट बीड़ी शफीम खाई। भूला काम : कमाई है ||घर ,त्रिया तो लागे खारी... पर नारी पातरिया प्यारी । संतू शिक्षा दर हटाई ॥६॥ चार दिनों की यहार दिखाये। खिला फूल वोही फुमलावें, ब्रह्मदस गयो 'पछताई हैं। ७ ॥' एक युवानी फिरधिन पल्ले जी रामें चलाये । तो रस्ते.बले करना मुशकिल भलाई है । महा मादर पधारे पूज्य । साल सतत्तर मगसर दूजा या चौथमल दरशाई है ॥ ६ ॥ . . . . ISon : - .::: २० अहिंसा प्रचार (तर्ज-विना रघुनाथ के देने नहीं दिलकों करारी है). सौहयेत संत की ऐसी अरे पापी भी तिर जावे। सुन एक बार जिन बानी भनी वैराग्य में छावें ॥ टेर. यात