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(३०६)
जैन सुवोध गुटका।
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पूर्ति के, खातिर करे जुल्म क्यों । मरना तुझे है एक दिन, बान्धे क्यों पाप भारा ॥२॥ कर खून न्याय का तूं, दिल में खुशी मनावे । लेजायगा क्या यहां से, रहेगा सभी पसारा ॥ ३॥ करके तुराई क्यों तूं, आदत को पोपता है। जहां तक सहायी पुण्य है, सुधरेगा काज सारा ॥४॥ करले तूं प्रेम सब से, अब छोड़ पता को । होगा भला इसी में, अए दिल समझ प्यारा ॥ ५ ॥. यह पाप ग्यारवां है, महावीर ने बताया । कहे चौथमल समभाले, तुझ को , किया इशारा ॥ ६॥ . .. .
नम्बर ४१७
(त-कमलीपाले की) ___ यह अधम उधारन जन्म लिया, भारत में पीर जिनश्वर ने। अंज्ञान तिमिर को दूर किया, भारत में वीर जिनेश्वर ने ॥ टेक | मिथ्यात्व भने में पड़ करके, भूलें थे जन सत्य पथ को भी। उन को सुमारंग दरसाया, भारत में वीर जिनेश्वरने ॥ १॥ समवशरण में सुर नर सिंह, बकरी पशु आदि आते थे । पर राग द्वेष को विसराया भारत में चीर जिनेश्वर ने ॥२॥ अहिंसा तत्वं सब के दिल में,प्रभु कूट कूट के भर दर्दाना । फिर हिंसा को वनवास दिया, भारत में वीर जिनश्वर ने ।। ३.॥ खूब धर्म प्रचार किया, ले दीक्षा अन्तर्यामी ने । अव रखो प्रेम.यो. सिखलाया, भारत में