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जैन सुबोध गुटका ।
किया, नये शहर विष आनंद भया । गुरु प्रसाद चौथमल कहता है, कर जाप तूं त्रशला नंदन का ॥४॥
३८६ पूर्व परिचय [तर्ज-भारत में प्रालिजाएं थी इन्लाने किसी दिन]
दुनियां में कैसे वीर थे, मोजूदा किसी दिन । तारीफ जिन की करते थे, हर जा में किसी दिन ॥ टेर ॥ लवजी ऋषि लोकाशाह, धर्मसी महात्मा । करने को परहित जान तक, देते थे किसी दिन ॥१॥ गणधर ग्यारे हो चुके, चरचा में वीर थे । उन से शरमाया करते थे, विद्वाने किसी दिन ॥२॥ बाहुबली योद्धा 'हुवे, भारत के बीच में। पहाड़ तक थरराते थे, सुन वाज किसी दिन ॥ ३॥ .विक्रम प्रजा के वास्ते, कर सहन आपत्ति । घर घर पूछा करते थे, आराम किसी दिन ॥४॥ है कीर्ति मौजूद श्राज, कर्ण भूप की । दीनों का पालन करते थे, दे : दान किसी :दिन ॥ ५ ॥ संघरथ शिवी-सा भूपति, दया के वास्ते । काया को खंडन करते थे, वे वीर किसी दिन ।। ६॥ उठा लिया गिरिराज को, अंगुली पे पलक में । अवतारी ऐसे होते थे, जहां में किसी दिन ॥ ७ ॥ अपने धर्म के वास्ते, राणा परतापसिंह । बनवा कर रोटी घास की, खाते थे किसी दिन ॥ ८॥ कहे चौथमल चेतो जरा अए हिन्द