Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, ७, ४८
३६ ] चिराणाणुभागादो अनंतगुणहीणो अजोगि' चरिमसमए एगणिसेयमवलंबिय द्विदो कथं णामाणुभागादो अप' तखवगसेडिघादादो संसारिजीवखंडयघादेहि मुक्कस्सं पेक्खिदूण अनंतगुणहीणत्तमावण्णादो अर्णतगुणो होज्ज १ अण्णं च वेदणीय उक्कस्साणुभागादो असादसणिदादो संसारात्थाए जसकित्तिउक्कस्साणुभागो अनंतगुणो, सो कथं संसारिखंयवादेहि खवगसेडिम्मि घादं पत्तअसादावेदणीयाणुमागादो अनंतगुणहीणो कीरदे ! ण एस दोसो, ण केवलमकसायपरिणामो चेव अणुभागघादस्त कारणं, किंतु पयडिगयसत्तिसव्वपेक्खो परिणामो अणुभागघादस्स कारणं । तत्थ वि पहाणमंतरंगकारणं, तम्हि कस्से संते बहिरंगकारणे थोवे वि बहुअणुभागघाददंसणादो, अंतरंगकारणे थोवे संते बहिरंगकारणे बहुए संते वि बहुअणुभागघादाणुवलंभादो । तदो णामाणुभागघादअंतरंगकारणादो वेदणीयाणुभागघादअंतरंगकारणमणंतगुणहीणमिदि णामजहण्णाणुभागादो वेदणीयजहण्णाणुभागस्स अनंतगुणत्तं जुजदे । एवं जहण्णअप्पा बहुअं समत्तं ।
उक्कस्सपदेण सव्वत्थोवा आउववेयणा भावदो उक्कस्सिया ॥ ४८ ॥ कुदो ? भवधारणमेत्तकञ्जकारितादो ।
द्वारा घातको प्राप्त हो चुका है इसलिए जो चिरन्तन अनुभागकी अपेक्षा अनन्तगुणाहीन होता हुआ अयोगिकेवली के अन्तिम समय में एक निषेकका अवलम्बन लेकर स्थित है वह भला जो क्षपकश्रेणिमें घातको नहीं प्राप्त हुआ है और जो संसारी जीवोंके काण्डकघातोंके द्वारा अपने उत्कृष्ट अनुभागकी अपेक्षा अनन्तगुणाहीन है, ऐसे नामकर्मके जघन्य अनुभागसे अनन्तगुणा कैसे हो सकता है ? दूसरे, संसार अवस्थामें यशः कीर्तिका उत्कृष्ट अनुभाग असात संज्ञावाले वेदनीयके उत्कृष्ट अनुभाग से अनन्तगुणा होता है ऐसी अवस्थामें वह क्षपकश्रेणिमें संसारी जीवोंके काण्डकघातोंके द्वारा घातको प्राप्त हुए असातावेदनीयके अनुभागकी अपेक्षा अनन्तगुणाहीन कैसे किया जा सकता है ?
समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, केवल अकषाय परिणाम ही अनुभागघातका कारण नहीं है, किन्तु प्रकृतिगत शक्तिकी अपेक्षा रखनेवाला परिणाम अनुभागघातका कारण है । उसमें भी अन्तरंग कारण प्रधान है, उसके उत्कृष्ट होनेपर बहिरंग कारणके स्तोक रहनेपर भी अनुभाग घात बहुत देखा जाता है । तथा अन्तरंग कारणके स्तोक होनेपर बहिरंग कारण के बहुत होते हुए भी अनुभागघात बहुत नहीं उपलब्ध होता । यतः नामकर्मसम्बन्धी अनुभागके घातके अन्तरंग कारणकी अपेक्षा वेदनीय सम्बन्धी अनुभागके घातका अन्तरंग कारण अनन्तगुणाहीन है अतः नामकर्मके जघन्य अनुभागकी अपेक्षा वेदनीयके जघन्य अनुभागका अनन्तगुणा होना उचित ही है इस प्रकार जघन्य अल्पबहुत्व समाप्त हुआ ।
उत्कृष्ट पदका अवलम्बन लेकर भावको अपेक्षा आयु कर्मकी उत्कृष्ट वेदना सबसे स्तोक है ॥ ४८ ॥
क्यों कि वह भवधारण मात्र कार्यको करनेवाली है ।
१ प्रतौ जागे' इति पाठः । २ प्रतौ 'पज्जत' इति पाठः ।
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