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२, ४, १३, २४३.] वेयणसण्णियासविहाणाणियोगदारं प्पहुडि आउअस्स संखेज्जभागहाणी होदूण गच्छदि जाव उक्कस्सद्विदीए दुभागबंधो ति । तत्तो प्पहुडि संखेज्जगुणहाणी होदि जाव णाणावरणीय उक्कस्सहिदीए सह आउअस्स उक्कस्सट्ठिदिं जहण्णपरित्तासंखेज्जेण खंडेदूण तत्थ एगखंडमेत्तआउट्ठिदी' पबद्धा ति । तत्तो प्पहुडि असंखेज्जगुणहाणी होदण गच्छदि जाव तपाओग्गअंतोमुत्तमेत्तहिदि त्ति । कथं णाणावरणीयउकस्सटिदिपाओग्गपरिणामेहि आउअस्स चउट्ठाणपदिदो बंधो जायदे ? ण एस दोसो, णाणावरणीयउक्करसहिदिबंधपाओग्गपरिणामेसु वि अंतोमुहुत्तमेत्तआउद्विदिबंधपाओग्गपरिणामाणं संभवादो । कधमेगो परिणामो भिण्णकज्जकारओ ? ण, सहकारिकारणसंबंधभेएण तस्स तदविरोहादो।।
एवं छण्णं कम्माणं आउववज्जाणं ॥२४२ ॥
जहा णाणावरणीए णिरुद्धे सेसकम्माणं सण्णियासो को तहा सेसछकम्माणमाउअवज्जाणं कायव्यं, विसेसाभावादो ।
जस्स आउअवेयणा कालदो उकस्सा तस्स सचण्णं कम्माणं वेयणा कालदो किमुक्कस्सा अणुकस्सा ॥ २४३ ॥
सुगमं । संख्यातभाग हानि होकर उत्कृष्ट स्थिति के द्वितीय भागका बन्ध होने तक जाती है। वहाँ से लेकर ज्ञानावरणीयकी उत्कृष्ट स्थिति के साथ आयुकी उत्कृष्ट स्थितिको जघन्य परीतासंख्यातसे खण्डित कर उसमें एक खण्ड प्रमाण आयुकी स्थितिके बाँधने तक संख्यातगुणहानि होती है। वहाँ से लेकर तत्प्रायोग्य अन्तर्मुहूर्त मात्र स्थिति तक असंख्यातगुणहानि होकर जाती है।
शंका-ज्ञानावरणीयकी उत्कृष्ट स्थिति योग्य परिणामोंके द्वारा आयु कर्मका चतुःस्थान पतित बन्ध कैसे होता है ? - समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, ज्ञानावरणीयकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्ध योग्य परिणामोंमें भी अन्तमुहूर्त मात्र आयुःस्थितिके बन्ध योग्य परिणाम सम्भव है।
शंका-एक परिणाम भिन्न कार्योंको करनेवाला कैसे होता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, सहकारी कारणों के सम्बन्धभेदसे उसके भिन्न कार्योंके करनेमें कोई विरोध नहीं है।
इसी प्रकार शेष छह कर्मोको प्ररूपणा करनी चाहिये ।। २४२ ॥
जिस प्रकार ज्ञानावरणीयकी विवक्षामें शेष कर्मों के संनिकर्षकी प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार आयुको छोड़कर शेष छह कर्मों के संनिकर्षकी प्ररूपणा करनी चाहिये, क्योंकि उसमें कोई विशेषता नहीं है।
जिस जीवके आयुकी वेदना कालकी अपेक्षा उत्कृष्ट होती है उसके सात कर्मोंकी वेदना कालकी अपेक्षा क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ! २४३ ॥
यह सूत्र सुगम है। १ अ-ताप्रत्योः 'श्राउहिदीए' इति पाठः।
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