Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २,१४,५२. एकेका इदि 'विच्छाणिद्देसेण सगंतोक्खित्तबहुत्तेण समाणाहियरणतं पडि विरोहाभावादो।
एवदियाओ पयडीओ ॥ ५२ ॥ सुगमं । एवमाउअ-णामा-गोदाणं ॥५३॥ सुगम ।
एवं खेत्तपच्चासे त्ति अणियोगद्दारे समत्ते वेयणपरिमाणविहाणे' ति समत्तमणियोगद्दारं ।
समाधान-नहीं, क्योंकि 'एक्केक्का' इस प्रकार अपने भीतर बहुत्वको रखनेवाले वीप्सानिर्देशसे उनका समानाधिकरण होने में कोई विरोध नहीं आता है।
उसकी इतनी प्रकृतियाँ हैं ॥ ५२ ॥ यह सूत्र सुगम है। इसी प्रकार आयु, नाम और गोत्र कर्मोके सम्बन्धमें कहना चाहिये ॥ ५३ ॥ यह सूत्र सुगम है।
इस प्रकार क्षेत्र प्रत्यास अनुयोगद्वारके समाप्त होनेपर वेदनापरिमाण
विधान यह अनुयोगद्वार समाप्त हुआ।
]च्छा' इति पाठः । २ अ-श्रा-काप्रतिषु 'परिणामविहाणे'
१ आप्रतौ 'मिच्छा', ताप्रती 'मि [ इति पाठः।
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