Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, १५, १९.] वेयणभागाभागविहाणाणियोगद्दारं
1000 __ कुदो ? एत्थतणगुणगारे सव्वपयडीणं संते वि सव्वपयडीओ णाणावरणीयपयडिपमाणेण अवहिरिज्जमाणाओ सादिरेयदोरूवमेत्त'अवहारसलागुवलंभणिमित्ताओ होति त्ति।
एवं दसणावरणीय-मोहणीय-अंतराइयाणं ॥ १६ ॥. ___ एदेसि कम्माणं जहा णाणावरणीयस्स खेत्तपच्चासपयडिपरूवणा कदा तहा भागाभागो च कायव्वो। ___णवरि मोहणीय-अंतराइयस्स सव्वण्यडीणं केवडियो भागो ॥१७॥
इदि पुच्छिदेअसंखेज्जदिभागो॥ १८॥ कारणं सुगमं । वेयणीयस्स कम्मस्स पयडीओ'
वेयणीयस्स कम्मस्स एकेका पयडी अण्णदरस्स केवलिस्स केवल समुग्धादेण समुहदस्स सव्वलोगं गयस्स खेत्तपच्चासएण गुणिदाओ सव्वपयडीणं केवडिओ भागो ॥ १६ ॥
कारण कि सब प्रकृतियोंको ज्ञानावरणीयकी प्रकृनियों के प्रमाणसे अपहृत करनेपर वे साधिक दो अङ्क प्रमाण अवहारशलाकाओंकी उपलब्धिमें निमित्त होती हैं।
इसी प्रकार दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय कर्मके सम्बन्धमें कहना चाहिये ॥१६॥
जिस प्रकारसे ज्ञानावरणीय कर्मकी क्षेत्रप्रत्यासप्रकृतियोंकी प्ररूपणा की गई है उसी प्रकारसे इन तीन कर्मों के भागाभागकी भी प्ररूपणा करनी चाहिये।
विशेष इतना है-मोहनीय और अन्तरायकी प्रकृत प्रकृतियाँ सब प्रकृतियोंके कितने भाग प्रमाण हैं ॥१७॥
ऐसा पूछनेपरवे उनके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं ॥ १८॥ इसका कारण सुगम है । अब वेदनीय कर्मकी प्रकृतियाँ बतलाते हैं
केवलिसमुद्घातसे समुद्घातको प्राप्त होकर सर्व लोकको प्राप्त हुए अन्यतर केवलीके इस क्षेत्र प्रत्याससे समयप्रवद्धार्थकता प्रकृतियोंको गुणित करनेपर जो प्राप्त हो उतनी मात्र वेदनीय कमेकी एक एक प्रकृति होती है। ये प्रकृतियाँ सब प्रकृतियोंके कितने भाग प्रमाण हैं ॥१९॥
१अप्रती-रूवमेत्तोइति पाठः। २प्रतिषु 'वेयणीयस्स कम्मत्स पयडीअो' इति पाठःअनन्तरसूत्रे सम्मिलितम्।
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