Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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५१०] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, १६, ८. (णामस्स कम्मस्स पयडीओ असंखेजुगुणाओ॥८
एत्थ गुणगारो असंखेज्जा लोगा। (दसणावरणीयस्स कम्मस्स पयडीओ असंखेजगुणाओ ॥६)
एत्थ वि गुणगारो असंखेज्जा लोगा। (णाणावरणीयस्स कम्मस्स पयडीओ विसेसाहियाओ॥१०॥
केत्तियमेत्तो विसेसो ? असंखेज्जा कप्पा । एवं पगदिअट्ठदा समत्ता । (समयपबद्धट्टदाए सव्वत्थोवा आउअस्स कम्मस्स पयडीओ॥११॥
कुदो ? अंतोमुहुत्तपमाणत्तादो । (गोदस्स कम्मस्स पयडीओ असंखेजगुणाओ॥ १२॥
को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । (वेयणीयस्स कम्मस्स पयडीओ विसेसाहियाओ॥१३॥
केत्तियमेतो विसेसो ? पण्णारससागरोवमकोडाकोडिमेत्तो। (अंतराइयस्स कम्मस्स पयडीयो संखेजगुणाओ॥ १४॥
को गुणगारो ? सादिरेयतिण्णिरूवाणि । (मोहणीयस्स कम्मस्स पयडीओ संखेजगुणाओ॥ १५ ॥ एत्थ गुणगारो संखेजा समया । नामकर्मकी प्रकृतियाँ उनसे असंख्यातगुणी हैं ॥ ८॥ यहाँ गुणकारका प्रमाण असंख्यात लोक है। दर्शनावरणीयकी प्रकृतियाँ उनसे असंख्यातगुणी हैं ॥ ९॥ यहाँ भी गुणकार असंख्यात लोक प्रमाण है। ज्ञानावरणीयकी प्रकृतियाँ उनसे विशेष अधिक हैं ।। १० ॥ विशेष कितना है ? वह असंख्यात कल्प प्रमाण है । इस प्रकार प्रकृत्यर्थता समाप्त हुई। समयप्रबद्धार्थताकी अपेक्षा आयुकर्मकी प्रकृतियाँ सबसे स्तोक हैं ॥ ११ ॥ क्योंकि, वे अन्तर्मुहूत प्रमाण हैं। गोत्रकर्मकी प्रकृतियाँ उनसे असंख्यातगुणी हैं ॥ ॥ १२ ॥ गुणकार क्या है ? वह पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है। वेदनीयकर्मकी प्रकृतियाँ उनसे विशेष अधिक हैं ॥ १३ ॥ विशेषका प्रमाण कितना है ? उसका प्रमाण पन्द्रह कोड़ाकोड़ी सागरोपम है। अन्तराय कर्मको प्रकृतियाँ उनसे संख्यातगुणी है ॥ १४ ॥ गुणकार क्या है ? गुणकार साधिक तीन अङ्क है। मोहनीय कर्मकी प्रकृतियाँ उनसे संख्यातगुणी हैं ॥ १५ ॥ यहाँ गुणकार संख्यात समय है।
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