Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 541
________________ २०४] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, १५, २० सुमम। असंखेज्जदिभागो ॥२०॥ सुगम। एवमाउअ-णामा-गोदाणं ॥ २१ ॥ जहा वेयणीयस्स भागाभागो परूविदो तहा एदेसिं तिण्णं कम्माणं परूवेदव्यो । एवं खेत्तपच्चासए त्ति अणिओगद्दारे समत्ते वेयणाभागाभागविहाणे ति समत्तमणियोगद्दारं। यह सूत्र सुगम है। वे उनके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं ॥ २० ॥ यह सूत्र सुगम है। इसी प्रकार आयु, नाम और मोत्र कर्मके सम्बन्ध में कहना चाहिये ॥ २१ ॥ जिस प्रकार वेदनीय कर्मके भागाभागकी प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार इन तीन कर्मो के भागाभागकी भी प्ररूपणा करनी चाहिये। इस प्रकार क्षेत्रप्रत्यास अनुयोगद्वारके समाप्त होनेपर वेदनाभागाभागविधान यह अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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