Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 537
________________ ५०४] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, १५, ५ णीयपयडिपमाणं लब्भदि । एवं दंसणावरणीयस्स वि सादिरेगदोरूवमेतो भागहारो साहेयव्यो। वेयणीय-मोहणीय-आउअ-णामा-गोद-अंतराइयस्स कम्मस्स पयडीओ सव्वपयडीणं केवडियो भागो ॥५॥ सुगमं । असंखेजदिभागो ॥ ६॥ सग-सगपयडीहि सव्वपयडिसमूहे भागे हिदे असंखेज्जलोगमेत्तरूवोवलंभादो। एवं पयडिअट्टदा समत्ता । समयपबद्धट्टदाए॥ ७॥ एदमाहियारसंभालणसुत्तं सुगमं । णाणावरणीय-दसणावरणीयस्स कम्मस्स एकेका पयडी तोसं तीसं सागरोवमकोडाकोडीयो समयपबद्धट्ठदाए गुणिदाए सव्वपयडीणं केवडिओ भागो ॥८॥ एत्थ एवं सुत्तसंबंधो कायव्यो। तं जहा–तीसं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ समयपबद्धट्टदाए गुणिदाए णाणावरणीय-दसणावरणीयस्स कम्मस्स एकेका पयडी प्रकृतियोंका प्रमाण उपलब्ध होता है। इसी प्रकार दर्शनावरणीयके भी साधिक दो अङ्क मात्र भागहारको साध लेना चाहिये। वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय कर्मकी प्रकृतियां सब प्रकृतियों के कितने भाग प्रमाण हैं ॥ ५ ॥ यह सूत्र सुगम है। वे उनके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं ॥ ६॥.. अपनी अपनी प्रकृतियोंका सब प्रकृतियोंके समूहमें भाग देनेपर असंख्यात लोक मात्र अङ्क पाये जाते हैं। इस प्रकार प्रकृत्यर्थता समाप्त हुई। समयप्रबद्धार्थका अधिकार है ।। ७ ।। यह अधिकारका स्मरण करानेवाला सूत्र सुगम है। तीस तीस कोडाकोड़ीसागरोपमोंको समय प्रबद्धार्थता से गुणित करने पर जो प्राप्त हो उतनी मात्र ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीयकी एक एक प्रकृति सब प्रकृतियोंके कितने भाग प्रमाण हैं ॥ ८॥ यहाँ इस प्रकारसे सूत्रका सम्बन्ध करना चाहिये। यथा-तीस तीस सागरोपम कोडाकोड़ियोंको समयप्रबद्धार्थतासे गुणित करनेपर जो प्राप्त हो इतनी मात्र ज्ञानावरणीय और दर्शना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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