Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 519
________________ ४८६ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, १४, २६. णाणावरणीय-दसणावरणीय-अंतराइयस्स कम्मस्स एकेका पयडी तासं तीसं सागरोवमकोडाकोडीयो समयपबद्धट्टदाए गुणिदाए ॥२६॥ ____णाणावरणीय-दसणावरणीय-अंतराइएसु एकेक्का पयडी। तिस्से कम्मट्ठिदिसमयभेदेण भेदो वुच्चदे। तं जहा-तीसंसागरोवमकोडाकोडीओ एदेसिं कम्माणं कम्मट्ठिदी । तिस्से चरिमसमए कम्महिदिमेत्ता समयपबद्धा अस्थि । कुदो ? कम्मट्ठिदिपढमसमयप्पहुडि जाव चरिमसमओ ति एत्थ बद्धसमयपबद्धाणं एगपरमाणुमादि कादण जाव अणंतपरमाणूणं कम्मट्टिदिचरिमसमए पाहुडणिल्लेवणट्ठाणसुत्तबलेण' उवलंभादो। कम्मट्टिदि. आदिसमए पबद्धपरमाणूण कम्महिदिचरिमसमए एगा चेव द्विदी होदि । एसा एगा पयडी। विदियसमए पबद्धकम्मपरमाणण' कमट्टिदिचरिमसमए वट्टमाणा विदिया पयडी, एदेसिं दुसमयहिदिदंसणादो। ण च एगसमयादो दोण्णं समयाणमेयत्तं, विरोहादो । नदो तब्मेदेण पयडिभेदेण वि होदव्यमण्णहा सव्वसंकरप्पसंगादो । एवं . तदियसमयपबद्धाणमण्णा पयडी, चउत्थसमयपबद्धाणमण्णा पयडि त्ति णेदव्यं जाव कम्महिदिचरिमसमयपबद्धो ति। पुणो एदे समयपबद्धे कालभेदेण पयडिभेदमुवगए संकलिजमाणे एगसमयपबद्धसलागाणं ठविय तीसकोडाकोडीहि गुणिदे एत्तियमेत्ताओ कालणिबंधणपयडीओ णाण-दसणावरण-अंतराइयाण मेकेकिस्से पयडीए होति । ___ ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तराय कर्मकी एक एक प्रकृति तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपमोंको समय प्रबद्धार्थतासे गुणित करने पर जो प्राप्त हो उतनी है ॥२६॥ ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तराय इनमेंसे जो एक एक प्रकृति है उसका कमस्थितिके समयोंके भेदसे भेद कहते हैं। यथा-इन कर्मोंकी कर्मस्थिति तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम प्रमाण है। उसके अन्तिम समयमें कर्मस्थिति प्रमाण समयप्रबद्ध होते हैं, क्योंकि, कर्मस्थितिके प्रथम समयसे लेकर उसके अन्तिम समय तक यहाँ बांधे गये समयप्रबद्धोंके एक परमाणुसे लेकर अनन्त परमाणु तक कमस्थितिके अन्तिम समयमें कसायपाहुडके निलेपनस्थान सूत्रके बलसे पाये जाते हैं। कर्मस्थितिके प्रथम समयमें तो बँधे हुए परमाणुओंकी कर्मस्थिति के अन्तिम समयमें एक ही स्थिति होती है । यह एक प्रकृति है। द्वितीय समयमें बांधे गये कर्मपरमाणुओंकी कर्मस्थितिके अन्तिम समयमें वर्तमान द्वितीय प्रकृति है, क्योंकि, इनकी दो समय स्थिति देखी जाती है। एक समयका दो समयोंके साथ अभेद नहीं हो सकता, क्योंकि, उसमें विरोध है । इस कारण समयभेदसे प्रकृतिभेद भी होना ही चाहिये, अन्यथा सर्वशंकर दोषका प्रसंग आता है। इसी प्रकार तृतीय समयमें बांधे गये परमाणुओंकी अन्य प्रकृति, चतुर्थ समयमें बांधे गये परमाणुओंकी अन्य प्रकृति, इस प्रकार कमस्थितिके अन्तिम समय तक ले जाना चाहिये । अब कालके भेदसे प्रकृतिभेदको प्राप्त हुए इन समयप्रबद्धोंका संकलन करनेपर एक समयप्रबद्धकी शलाकाओंको स्थापितकर तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपमोंसे गुणित करनेपर इतनी मात्र ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायमेंसे एक एक कमकी प्रकृतियाँ होती हैं। १ अ-आप्रत्योः -णिलेवण' इति पाठः । २ अ-काप्रत्योः 'परमाणू' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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