Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, १४, ४४] वेयणपरिमाणविहाणाणियोगद्दारं
[४६७ गोदस्स कम्मस्स एकेका पयडी बीसं-दससागरोवमकोडाकोडीओ समयपबद्धट्टदाए गुणिदाए ॥४१॥
वीसंसागरोवमकोडोकोडीहि एगसमयपबद्ध गुणिदे णीचागोदस्स समयपबद्धहदापमाणं होदि । दससागरोवमकोडाकोडीहि गुणिदे उच्चागोदस्स समयपबद्धट्टदापमाणं होदि । एत्थ सादासादाणं परूविदविहाणं संचिंतिय वत्तव्वं ।
एवंदियाओ पयडोओ ॥४२॥ सुगमं । एवं समयपबद्धट्ठदा त्ति समत्तमणियोगद्दारं । खेत्तपञ्चासे ति ।। ४३ ॥
एदम हियारसंभालणसुत्तं । प्रत्यास्यते अस्मिन्निति प्रत्यासः, क्षेत्रं तत्प्रत्यासश्च क्षेत्रप्रत्यासः । जीवेण ओट्ठद्धखेत्तस्स खेत्तपञ्चासे त्ति सण्णा ।
णाणावरणीयस्स कम्मस्स केवडियाओ पयडीओ॥४४॥ सुगमं ।
णाणावरणीयस्स कम्मस्स जो मच्छो जोयणसहस्सओ सयंभुरमणसमुदस्स बाहिरल्लए तडे अच्छिदो, वेयणसमुग्धादेण समुहदो,
बीस और दस कोड़ाकोड़ी सागरोपमोंको समयप्रवद्धार्थता से गुणित करनेपर जो प्राप्त हो उतनी गोत्र कमेकी एक एक प्रकृति है ॥ ४१ ॥
__एक समयप्रबद्धको बीस कोड़ाकोड़ी सागरोपमोंसे गुणित करनेपर नीच गोत्रकी समयप्रबद्धार्थताका प्रमाण होता है । तथा दस कोड़ाकोड़ी सागरोपमोंसे गुणित करनेपर उच्चगोत्रकी समयप्रबद्धार्थताका प्रमाण होता है। साता व असाता वेदनीयके सम्बन्धमें जो विधि प्ररूपित की गई है उसको भले प्रकार विचार कर यहाँ भी कहनी चाहिये।
उसकी इतनी प्रकृतियाँ हैं ॥ ४२ ॥ यह सूत्र सुगम है।
इस प्रकार समयप्रबद्धार्थता यह अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। क्षेत्रप्रत्यास अनुयोगद्वारका अधिकार है ॥ ४३ ॥ यह सूत्र अधिकारका स्मरण कराता है।
जहाँ समीपमें रहा जाता है वह प्रत्यास कहा जाता है, क्षेत्र रूप प्रत्यास क्षेत्रप्रत्यास, इस प्रकार यहाँ कर्मधारय समास है । जीवके द्वारा अवष्टब्ध ( अवलम्बित ) क्षेत्रकी क्षेत्रप्रत्यास संज्ञा है।
ज्ञानावरणीय कमेकी कितनी प्रकृतियाँ हैं ? ॥ ४४ ॥ . यह सूत्र सुगम है। जो मत्स्य एक हजार योजन प्रमाण है, स्वयम्भूरमण समुद्रके बाह्य छ. १२-६३
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