Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंड में वेयणाखंड
कोडिता वा ? ण एस दोसो, जहा सादादीणं एगसमयअबंधगो' होदूण विदियसमए चैव बंधगो होदि, एवं ण आउअस्स; किं तु सेसाउअस्स वेत्तिभागं गंतूण चेव बंधगो होदित्ति जाणावण अंतो मुहुत्तग्गहणं कदं । एवदियाओ पयडीओ ॥ ३६ ॥
सुगमं ।
णामस्स कम्मरस' केवडियाओ पयडीओ ॥ ३७ ॥ सुगमं । णामस्स कम्मस्स एकेका पयडी वीसं अट्ठारस-सोलस-पणारसचोहस्स - बारस - दससागरोवम कोडाकोडीयो समयपबद्धदाए गुणिदाए ॥ ३८ ॥
णिरय गइ - णिरयगइपाओग्गाणुपुव्वि-तिरिक्खगइतिरिक्खगइपाओग्गाणुपुव्वि-एइंदियचिदियजादि - [ ओरालिय- वेउब्विय - ] तेजा - कम्मइयसरीर वण्ण-गंध-रस- फास-ओरालियवे उव्वियसरीरअंगोवंग- हुंड संठाण - असंपत्त सेवट्टसंघडण - अगुरुवल हुग-उवघाद - परघादउस्सास - आदावुजोव - अप्पसत्थविहायगदि - थावर - तस - बादर - पञ्जत्त - पत्तेयसरीर- अथिर - असुह-अणादेज- दुभग- दुस्सर - अजसकित्ति - णिमिणणामाणं वीसं सागरोवम को डाकोडीयो
उसकी इतनी प्रकृतियाँ हैं ॥ ३६ ॥
यह सूत्र सुगम है ।
नाम कर्मकी कितनी प्रकृतियाँ हैं ॥ ३७ ॥
यह सूत्र सुगम है ।
[ ४,
समाधान- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि जिस प्रकार साता वेदनीय आदि कर्मोंका एक समय अबन्धक होकर द्वितीय समयमें ही बन्धक हो जाता है, इस प्रकार आयुकर्मका बन्धक नहीं होता; किन्तु शेष आयुके दो त्रिभाग बिताकर ही बन्धक होता है, यह बतलाने के लिए अन्तर्मुहूर्त - का ग्रहण किया है ।
२, १४, ३६.
बीस, अठारह, सोलह, पन्द्रह, चौदह, बारह और दस कोड़ाकोड़ी सागरोपमों को समयप्रबुद्धार्थता से गुणित करनेपर जो प्राप्त हो उतनी नामकर्मकी एक एक प्रकृति है ॥ ३८ ॥
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नरकगति, नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, तिर्यग्गाति, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, एकेन्द्रिय जाति पंचेन्द्रिय जाति, [ औदारिक, वैक्रियिक, ] तैजस व कार्मण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, औदारिक व वैक्रियिक शरीरागोपांग, हुण्डसंस्थान, असंप्राप्तासृपाटिका संहनन, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छवास, आतप, उद्योत, अप्रशस्तविहायोगति, स्थावर, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, अस्थिर, अशुभ, अनादेय, दुर्भाग, दुस्वर, अयशःकीर्ति और निर्माण इन नामकर्मकी प्रकृतियोंका
१ ताप्रती 'एग समयपबंधगो' इति पाठः । २ आा-का-ताप्रतिषु 'णामकस्स' इति पाठ: । ३ तापतौ 'वारससागरोवम' इति पाठः ।
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