Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ४, १३ वेयणसण्णियासविहाणाणियोगदार
[४५१ उक्कस्सा ॥ २३६ ॥
कुदो ? लोगे आरिदे जीवादो अभिष्णाणमेदेसि कम्माणं वेयणीयस्सेव 'सव्वलोगावट्ठाणुवलंमादो।
एवमाउअ-णामा-गोदाणं ॥ २३७॥
जहा वेयणीए णिरुद्धे सेसकम्माणं परूवणा कदा तहा एदेसु वि तिसु कम्मेसु णिरुद्धसु परूवणा कायव्वा ।
जस्स णाणावरणीयवेयणा कालदो उकस्सा तस्स छण्णं कम्माणमाउअवज्जाणं वेयणा कालदो किमुक्कस्सा अणुकस्सा ॥ २३८ ॥
सुगमं ।
उकस्सा वा अणुकस्सा वा, उकस्सादो अणुकस्सा असंखेज्जभागहीणा ॥ २३६ ॥
णाणावरणीएण सह जदि सेसछकम्मेहि उक्कस्सद्विदी पवद्धा तो णाणावरणीएण सह सेसछकम्माणि वि डिदिं पडुच्च उकस्साणि चेव होति । जदि पुण विसेसपञ्चएहि सेसकम्माणि विगलाणि होति तो णाणावरणहिदीए उक्कस्सीए संतीए सेसकम्महिदी
उत्कृष्ट होती है ॥ २३६ ॥
कारण कि लोकके पूर्ण होनेपर अर्थात् लोकपूरणसमुद्बातमें जीवसे अभिन्न इन काँका वेदनीयके ही समान सब लोकमें अवस्थान पाया जाता है ।
इसी प्रकार आयु, नाम और गोत्रकी विवक्षामें भी प्ररूपणा करनी चाहिये ॥ २३७ ।।
जिस प्रकारसे वेदनीय कर्मकी विवक्षामें शेष कर्मोकी प्ररूपणा की गई है उसी प्रकारसे इन तीन कर्मोंकी विवक्षामें प्ररूपणा करनी चाहिये।
जिसके ज्ञानावरणीयकी वेदना कालको अपेक्षा उत्कृष्ट होती है उसके आयुको छोड़ शेष छह कर्मोंकी वेदना कालकी अपेक्षा क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ॥ २३८ ॥
यह सूत्र सुगम है।
वह उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी। उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट असंख्यातमाग हीन होती है ।।२३९ ।।
ज्ञानावरणीयके साथ यदि शेष छह कर्मोकी उत्कृष्ट स्थिति बाँधी गई है तो ज्ञानावरणीयके साथ शेष छह कर्म भी स्थितिकी अपेक्षा उत्कृष्ट ही होते है। परन्तु यदि विशेष प्रत्ययोंसे शेष कर्म विकल होते हैं तो ज्ञानावरणीयको स्थितिके उत्कृष्ट होनेपर शेष कर्मोकी स्थिति अनुत्कृष्ट होती है,
१ अ-श्रा-काप्रतिषु 'सव्वा-' इति पाठः ।
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