Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४६२] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, १३, २६६. खविदघोलमाणमस्सिदूण किमिदि ण वड्डाविज्जदे ? ण एस दोसो, णाणावरणीयस्स जहण्णदव्वाभावेण पयदपरूवणाए विरोहप्पसंगादो।
तस्स वेदणीय-णामा-गोदवेयणा दव्वदो किं जहण्णा ॥२६६ ॥ सुगमं । णियमा अजहण्णा असंखेजभागभहिया ॥२६७ ॥
सजोगिकेवलिणा पुचकोडिकालेण असंखेज्जगुणाए सेडीए विणासिज्जमाणदव्वस्स अविणासादो। तस्स अहियदव्वस्स खीणकसायचरिमसमए वट्टमाणस्स को भागहारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो।
तस्स मोहणीयवेयणा दव्वदो जहणिया णत्थि ॥ २६८ ॥ कुदो १ सुहुमसांपराइयचरिमसमए पुव्वं चेव विणद्वत्तादो । तस्स आउअवेयणा दव्वदो कि जहण्णा अजहण्णा ॥ २६६ ॥ सुगमं । णियमा अजहण्णा असंखेजगुणब्भहिया ॥२७०॥ णेरइयम्मि तेतीससागरोवमभंतर-असंखेज्जगुणहाणीयो गालिय दीवसिहागारेण शङ्का-क्षपितघोलमान जीवका आश्रय करके वृद्धि,क्यों नहीं करायी जाती है ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, उसके ज्ञानावरणीयके जघन्य द्रव्यका अभाव होनेसे कृत प्ररूपणाके विरुद्ध होनेका प्रसङ्ग आता है।
उसके वेदनीय, नाम और गोत्रकी वेदना द्रव्यकी अपेक्षा क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥ २६६ ॥
यह सूत्र सुगम है। वह नियमसे अजघन्य असंख्यातवें भाग अधिक होती है ॥२६७॥
कारण कि सयोगिकेवलीके द्वारा [ कुछ कम ] पूर्वकोटि मात्र कालमें असंख्यातगुणित श्रेणिरूपसे निर्जीर्ण किये जानेवाले द्रव्यका पूर्णतया विनाश नहीं हुआ है।
शङ्का-क्षीणकषायके अन्तिम समयमें वर्तमान उक्त अधिक द्रव्यका भागहार क्या है ? समाधान-उसका भागहार पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है। उसके मोहनीयकी वेदना द्रव्यकी अपेक्षा जघन्य नहीं होती ॥ २६८ ॥ कारण कि वह पहिले ही सूक्ष्मसाम्परायिक गुणस्थानके अन्तिम समयमें नष्ट हो चुका है। उसके आयुकी वेदना द्रव्यकी अपेक्षा क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥२६॥ यह सूत्र सुगम है। वह नियमसे अजघन्य असंख्यातगुणी अधिक होती है ॥ २७० ॥ नारकी जीवके तेतीस सागरोपम कालके भीतर असंख्यातगुणहानियोंको गलाकर दीप
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