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४, २, १३, ३००.] वेयणसपिणयासविहाणाणियोगदारं
जहण्णा ॥ २६६॥ अजोगिचरिमसमए तिण्णं वेयणाणमेगट्टिदिदंसणादो । एवमाउअ-णामा-गोदाणं ॥ २६७॥ जहा वेयणीयस्स सण्णियासो को तहा एदेसि पि तिण्णं कम्माणं कायव्वो।
जस्स मोहणीयवेयणा कालदो जहण्णा तस्स सत्तण्णं कम्माणं वेयणा कालदो किं जहण्णा अजहण्णा ॥ २६८॥
सुगमं । णियमा अजहण्णा असंखेजगुणब्भहिया ॥ २६६ ॥
कुदो ? एगसमयं पेक्खिण घादिकम्म,णं अंतोमुहुत्तमेट्टिदीए अघादीणं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेतद्विदीए च अंतोमुहत्तप्पहुडि हिदिसंतस्स च असंखेज्जगणतुवलंभादो।
जस्स णाणावरणीयवेयणा भावदो जहण्णा तस्स दंसणावरणीयअंतराइयवेयणा भावदो किं जहण्णा अजहण्णा ॥३०॥
सुगमं । वह जघन्य होती है ॥ २९६ ॥
कारण कि अयोगकेवलीके अन्तिम समयमें उक्त तीन वेदनाओंकी एक [ समय ] स्थिति देखी जाती है।
इसी प्रकार आयु, नाम और गोत्र कर्मकी प्ररूपणा करनी चाहिये ॥२९७॥
जिस प्रकारसे वेदनीयका संनिकर्ष किया गया है उसी प्रकारसे इन तीनों भी कर्मोंका करना चाहिये।
जिस जीवके मोहनीयकी वेदना कालकी अपेक्षा जघन्य होती है उसके सात कर्मोंकी वेदना कालकी अपेक्षा क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥ २९८॥
यह सूत्र सुगम है। वह नियमसे अजघन्य असंख्यातगणी अधिक होती है ॥ २६९ ॥
.कारण कि एक समयकी अपेक्षा घाति कर्मोंकी अन्तर्मुहूर्त मात्र स्थिति और अघाति कर्मोंकी पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र स्थिति ये दोनों स्थितियाँ तथा अन्तर्मुहूर्त आदि रूप स्थितिसत्त्व . भी असंख्यातगुणा पाया जाता है।
जिस जीव के ज्ञानावरणीय की वेदना भावकी अपेक्षा जघन्य होती है उसके दर्शनावरणीय और अन्तरायकी वेदना भावकी अपेक्षा क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥३०॥ __यह सूत्र सुगम है।
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