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४, २, १४,९] वेयणपरिमाणविहाणाणियोगदारं
[४८१ वेदणीयस्स कम्मस्स केवडियाओ पयडीओ ॥६॥ सुगमं । वेयणीयस्त कम्मस्स दुवे पयडीओ॥ ७॥ सादावेदणीयमसादावेदणीयमिदि दो चेव सहावा, सुह-दुक्खवेयणाहितो पुधभूदाए अण्णिस्से वेयणाए अणुवलंभादो । सुहभेदेण दुहभेदेण च अणंतवियप्पेण वेयणीयकम्मस्स अणंताओ सत्तीओ किण्ण पढिदाओ' ? सच्चमेदं जदिपज्जवट्ठियणओ अवलंबिदो। किं तु एत्थ दव्वट्ठियणओ अवलंबिदो त्ति वेयणीयस्स ण तत्तियमेत्तसत्तीओ, दुवे चेव । पज्जवट्ठियणओ एत्थ किण्णावलंविदो ? ण, तदवलंबणे पओजणाभावादो। णाण-दसणावरणेसु किमट्ठमवलंविदो ? जीवसहावावगमणहूँ ।
एवदियाओ पयडीओ ॥८॥ जत्तिया सहावा अत्थि तत्तिया चेव पयडीओ होति । मोहणीयस्स कम्मस्स केवडियाओ पयडीओ॥६॥ वेदनीय कर्मकी कितनी प्रकृतियाँ हैं ॥ ६ ॥ यह सूत्र सुगम है। वेदनीय कर्मकी दो प्रकृतियाँ हैं ॥ ७॥
सातावेदनीय और असातावेदनीय इस प्रकार वेदनीयके दो ही स्वभाव हैं, क्योंकि, सुख व दुख रूप वेदनाओंसे भिन्न अन्य कोई वेदना पायी नहीं जाती।
शंका-अनन्त विकल्प रूप सुखके भेदसे और दुखके भेदसे वेदनीय कर्मकी अनन्त शक्तियाँ क्यों नहीं कही गई हैं ?
समाधान-यदि पर्यायार्थिक नयका अवलम्बन किया गया होता तो यह कहना सत्य था, परन्तु चूँकि यहाँ द्रव्यार्थिक नयका अवलम्बन किया गया है अतएव वेदनीय की उतनी मात्र शक्तियाँ सम्भव नहीं हैं, किन्तु दो ही शक्तियाँ सम्भव हैं।
शंका-यहाँ पर्यायार्थिक नयका अवलम्बन क्यों नहीं किया गया है। समाधान-नहीं, क्योंकि, उसके अवलम्बनका कोई प्रयोजन नहीं था।
शंका-ज्ञानावरण और दर्शनावरणकी प्ररूपणामें उसका अवलम्बन किसलिये किया गया है ?
समाधान-जीवस्वभावका ज्ञान करानेके लिये यहाँ उसका अवलम्बन किया गया है। उसकी इतनी ही प्रकृतियाँ हैं ॥८॥ कारण कि जितने स्वभाव होते हैं उतनी ही प्रकृतियाँ होती हैं। मोहनीय कमकी कितनी प्रकृतियाँ हैं ॥४॥ १ अ-श्रा-काप्रतिषु 'पदिदाश्रो', ताप्रतौ 'पदि ( ठि) दानो' इति पारः। छ. १२-६१
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