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छक्खंडागमे वेयणाखंड । [२, ४, १३, २३२. सुगम । णियमा अणुक्कस्सा असंखेज्जगुणहीणा ॥ २३२ ॥
कुदो ? महामच्छुक्कस्सखेत्तेण घणलोगे भागे हिदे पदरस्स असंखेज्जदिभागमेत्तगुणगारुवलंभादो।
एवं दंसणावरणीय-मोहणीय-अंतराइयाणं ॥ २३३ ॥
जहा णाणावरणीयस्स परूवणा कदा तहा सेसतिण्णं घादिकम्माणं परूवणा कायव्वा, अविसेसादो।
जस्स वेयणीयवेयणा खेत्तदो उक्कस्सा तस्स णाणावरणीय-दंसणावरणीय-मोहणीय-अंतराइयवेयणा खेत्तदो उक्कस्सिया णथि ॥२३४॥
कुदो १ घादिचउकस्स लोगपूरणकाले अभावादो । किमढे पुत्वमेव तदभावो' ? ण, सामावियादो । ण च सहावो परपज्जणियोगारिहो, विरोहादो ।
तस्सआउव-णामा-गोदवेयणाखेत्तदो किमुक्कस्साअणुकस्सा॥२३५॥ सुगर्म । यह सत्र सुग वह नियमसे अनुत्कृष्ट असंख्यातगुणीहीन होती है ॥ २३२॥
कारण यह कि महामत्स्यके उत्कृष्ट क्षेत्रका घनलोकमें भाग देनेपर प्रतरका असंख्यातवाँ भाग मात्र गुणकार पाया जाता है।
इसी प्रकार दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तरायकी प्ररूपणा करनी चाहिये ॥ २३३ ॥
जिस प्रकारसे ज्ञानावरणीयकी प्ररूपणा की गई है उसी प्रकारसे शेष तीन घाति कर्मों की प्ररूपणा करनी चाहिये, क्योंकि, उनमें कोई विशेषता नहीं है।
जिस जीवके वेदनीयकी वेदना क्षेत्रकी अपेक्षा उत्कृष्ट होती है उसके ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तरायकी वेदना क्षेत्रकी अपेक्षा उत्कृष्ट नहीं होती ॥ २३४॥
कारण कि लोकपूरणकालमें चारों घातिकर्मोंका अभाव है। शंका-उनका अभाव पहिले ही किसलिये हो जाता है?
समाधान-नहीं, क्योंकि, ऐसा स्वभावसे होता है, और स्वभाव दूसरोंके प्रश्नके योग्य नहीं होता है; क्योंकि, उसमें विरोध है।
उसके आयु, नाम और गोत्रकी वेदना क्षेत्रकी अपेक्षा क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ॥ २३५ ।।
यह, सूत्र सुगम है। १ श्र-प्रा-काप्रतिषु 'तदाभावो' इति पाठः ।
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