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छक्खंडागमे वेयणाखंडं. [४, २, १३, १२२ सुगमं । णियमा अजहण्णा असंखेजगुणब्भहिया ॥ १२२ ॥ कुदो ? अद्धहरयणि उस्सेहमणुस्से हितो हेडिमउस्सेहमणुस्साणं अजोगिचरिमसमए अवट्ठाणाभावादो। ण च आहुट्ठस्सेहओगाहणाए घणंगुलस्स संखेज्जदिभागं मोत्तूण तदसंखेज्जदिभागत्तं, अणुवलंभादो। ण च जहण्णखेत्तमंगुलस्स संखेज्जदिभागो, तदसंखेच. दिमागत्तण साहियत्तादो। तम्हा तत्तो एदस्स सिद्धमसंखज्जगुणत्तं ।
तस्स कालदो कि जहण्णा अजहण्णा ॥१२३ ॥ सुगम । जहण्णा ॥ १२४॥ अजोगिचरिमसमयजहण्णदव्वम्हि जहण्णकालं' मोत्तण कालंतराभावादो। तस्स भावदो किं जहण्णा अजहण्णा ॥ १२५ ॥ सुगमं ।
जहण्णा [ वा ] अजहण्णा वा, जहण्णादो अजहण्णा अणंतगुणब्भहिया ॥ १२६॥
यह सूत्र सुगम है। वह नियमसे अजघन्य असंख्यातगुणी अधिक होती है ।। १२२ ॥
कारण कि अयोगकेवलीके अन्तिम समयमें साढ़े तीन रनि उत्सेधवाले मनुष्योंकी अपेक्षा नीचेके उत्सेध युक्त मनुष्योंका रहना सम्भव नहीं है । और साढ़े तीन रखि उत्सेध रूप अवगाहना घनांगुलके संख्यातवें भागको छोड़कर उसके असंख्यातवें भाग हो नहीं सकती, क्योंकि, वह पायी नहीं जाती है। इसके अतिरिक्त जघन्य क्षेत्र घनांगुलके संख्यातवें भाग प्रमाण हो, ऐसा भी नहीं है, क्योंकि, वह उसके असंख्यातवें भाग स्वरूपसे सिद्ध किया जाचुका है। इस कारण उसकी अपेक्षा इसका असंख्यातगुणत्व सिद्ध ही है।
उसके कालकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥ १२३ ॥ यह सूत्र सुगम है। उसके वह जघन्य होती है ॥ १२४ ॥
कारण कि अयोगकेवलीके अन्तिम समय सम्बन्धी जघन्य द्रव्यमें जघन्य कालको छोड़कर अन्य कालका अभाव है ।
उसके भावकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥१२५ ॥ . यह सूत्र सुगम है।
वह जघन्य भी होती है और अजघन्य भी । जघन्यकी अपेक्षा अजघन्य अनन्तगुणी अधिक होती है ॥ १२६ ॥
१ अ-श्रा-काप्रतिषु 'जहण्णाकालं' इति पाठः।
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