Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, १३, १४५] वेयणसण्णियासविहाणाणियोगद्दारं
[४२७ सेडिमारुहिय जदि चरिमसमयअजोगी जादो तो भावो जहण्णो चेव, दव्वं होदि पुण अजहण्णं, जहण्णकारणामावादो। होतं पि जहण्णदव्वं पेक्खिदूण अणंतभागब्भहियं असंखेज्जभागन्भहियं संखेज्जभागमाहियं संखज्जगुणब्महियं असंखेज्जगुणब्भहियं च होदि । कुदो ? जहण्णदव्वस्सुवरि परमाणुत्तरकमेण दव्वविहाणे परूविदपंचवुड्डित्तादो।
तस्स खेत्तदो किं जहण्णा अजहण्णा ॥ १४१ ॥ सुगमं । णियमा अजहण्णा असंखेजगुणब्भहिया ॥ १४२ ॥
कुदो ? सुहुमणिगोदअपज्जसजहण्णोगाहणाए अजोगिजहण्णोगाहणाए ओवट्टिदाए पलिदोवमस्स असंखज्जदिभागुवलंभादो।
तस्स कालदो कि जहण्णा अजहण्णा ॥१४३॥ सुगमं । जहण्णा ॥ १४४॥ कुदो ? जहण्णभावम्मि द्विददव्वस्स एगसमयडिदिदंसणादो ।
जस्स आउअवेयणा दव्वदो जहण्णा तस्स खेत्तदो किं जहण्णा अजहण्णा ॥१४५ ।। घोलमान अथवा गुणितकौशिक जीव क्षपक श्रेणिपर चढ़कर यदि अन्तिम समयवर्ती अयोगी हुआ है तो भाव जघन्य ही होता है, परन्तु द्रव्य अजघन्य होता है; क्योंकि, उसके जघन्य होनेका कोई कारण नहीं है। अजघन्य हो करके भी वह जघन्य द्रव्यकी अपेक्षा अनन्तवें भ अधिक, असंख्यातवें भागसे अधिक, संख्यातवें भागसे अधिक, संख्यातगुणा अधिक और असंख्यातगुणा अधिक होता है, क्योंकि, जघन्य द्रव्यके ऊपर परमाणु अधिक क्रमसे द्रव्यविधानमें कही गई पाँच वृद्धियाँ होती हैं।
उसके क्षेत्रकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥१४१ ॥ यह सूत्र सुगम है। वह नियमसे अजघन्य असंख्यातगणी अधिक होती है ॥ १४२ ॥
कारण कि सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनासे अयोगकेवलीकी जघन्य अवगाहनाको अपवर्तित करनेपर पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग पाया जाता है ।
उसके कालकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥१४३ ॥ यह सूत्र सुगम है। वह जघन्य होती है ॥ १४४ ॥ कारण कि जघन्य भावमें स्थित द्रव्यकी एक समय स्थिति देखी जाती है।
जिस जीवके आयुकी वेदना द्रव्यको अपेक्षा जघन्य होती है उसके क्षेत्रकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥१४५ ॥
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