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४, २, १३, २२१.] वेयणसणियासविहाणाणियोगदारं
[४४५ जो सो उक्कस्सओ परत्थाणवेयणसपिणयासो सो चउविहोदव्वदो खेत्तदो कालदो भावदो चेदि ॥ २१६ ॥ ____ एवं चउबिहो चेव, अण्णस्स अणुवलंभादो। एगसंजोग-दुसंजोग-तिसंजोग-चदुसंजोगेहि पण्णारस विहो किण्ण जायदे ? ण, संजोगस्स जचंतरीभूदस्स अणुवलंभादो । ण सव्वप्पणा' संजोगो, दोण्णमेगदरस्स अभावेण संजोगाभावप्पसंगादो । ण ऐगदेसेण, संजोगो, संजुत्तभावस्स अभावप्पसंगादो इयरत्थ वि संजोगाभावप्पसंगादो । तदो एदेण अहिप्पाएण चउव्विहो चेत्र उक्कस्सवेयणासण्णियासो त्ति सिद्धं ।
जस्स णाणावरणीयवेयणा दव्वदो उक्कस्सा तस्स छण्णं कम्माणमाउववजाणं दव्वदो किमुकस्सा अणुकस्सा ॥ २२० ।
सुगम ।
उकस्सा वा अणुकस्सा वा, उकस्सादो अणुकस्सा विट्ठाणपदिदा ॥ २२१ ॥
जो वह उत्कृष्ट परस्थानवेदनासंनिकर्ष है वह द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावकी अपेक्षा चार प्रकारका है ॥ २१९ ॥
इस प्रकार से वह चार प्रकारका ही है, क्योंकि, उनसे भिन्न और कोई भेद नहीं पाया जाता है।
शंका-एकसंयोग, द्विसंयोग, त्रिसंयोग और चतुःसंयोगसे वह पन्द्रह प्रकारका क्यों नहीं होता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, उनसे भिन्न जात्यन्तरीभूत संयोग पाया नहीं जाता। [ यदि वह पाया जाता है तो क्या सर्वात्मक स्वरूपसे अथवा एकदेश स्वरूपसे? 1 वह संयोग सर्वात्मक स्वरूपसे तो सम्भव है नहीं, क्योंकि, इस प्रकारसे दोनोंमेंसे एकका अभाव हो जानेके कारण संयोगके ही अभावका प्रसंग आता है । एकदेश रूपसे भी वह सम्भव नहीं है, क्योंकि, ऐसा माननेपर संयुक्तताके अभावका प्रसंग आता है, अथवा अन्यत्र भी संयोगके अभावका प्रसंग होना चाहिये। अतएव इस अभिप्रायसे चार प्रकारका ही उत्कृष्ट वेदनासंनिकर्ष है यह सिद्ध होता है।
जिस जीवके ज्ञानावरणीयकी वेदना द्रव्यकी अपेक्षा उत्कृष्ट होती है उसके आयुको छोड़कर शेष छह कर्मोंकी वेदना द्रव्यकी अपेक्षा क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ।। २२० ॥
यह सूत्र सुगम है।
वह उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी । उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट दो स्थानों में पतित है ॥ २२१ ॥
१ अ-काप्रत्योः ‘सम्बंपिणा', अापतौ 'सव्वंपिएग' इति पाठः ।
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