Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 472
________________ ४, २, १३, १६७.] वेयणसण्णियासविहाणाणियोगदारं [४३६ णियमा अजहण्णा असंखेज्जगुणब्भहिया ॥ १६२॥ कुदो ? ओघजहण्णकालेण एगसमएण जहण्णभावकाले भागे हिदे पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागेणणसोगरोवमबेसत्तभागुवलंभादो । जस्स गोदवेयणा दव्वदो जहण्णा तस्त खेत्तदो किं जहण्णा अजहणणा॥ १६३ ॥ सुगम। णियमा अजहण्णा असंखेज्जगुणब्भहिया ॥ १६४॥ कुदो ? ओघजहण्णखेत्तेण' अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तेण संखेज्जंगुलमेत्त. अजोगिकेवलिजहण्णोगाहणाए ओवट्टिदाए असंखेज्जरूवोवलंभादो। तस्स कालदो किं जहण्णा अजहण्णा ॥ १६५ ।। सुगमं । जहण्णा ॥ १६६॥ कुदो १ जहण्णदव्वस्स एगसमयावट्ठाणदंसणादो। तस्स भावदो कि जहण्णा अजहण्णा ॥१६७ ॥ सुगम। वह नियमसे अजघन्य असंख्यातगुणी अधिक होती है ॥१९२॥ कारण कि एक समय रूप ओघ जघन्य कालका जघन्य भावकालमें भाग देनेपर पल्योपमके असंख्यातवें भागसे हीन एक सागरोपमके सात भागोंमेंसे दो भाग पाये जाते हैं। जिस जीवके गोत्रकी वेदना द्रव्यकी अपेक्षा जघन्य होती है उसके क्षेत्रकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥ १९३ ॥ यह सूत्र सुगम है। नियमसे वह अजघन्य असंख्यातगुणी अधिक होती है ॥१९४॥ कारण कि अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण ओघजघन्य क्षेत्रका संख्यात धनांगुल प्रमाण अयोगकेवलीकी जघन्य अवगाहनामें भाग देनेपर असंख्यात रूप पाये जाते हैं। उसके कालकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥१९॥ यह सूत्र सुगम है। वह जघन्य होती है ॥ १६६ ॥ क्योंकि, जघन्य द्रव्यका एक समय अवस्थान देखा जाता है। उसके भावकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥ १९७ ॥ यह सूत्र सुगम है। १ श्र-श्रा-काप्रतिषु 'कुदो अजहण्णाखेतेण', ताप्रती अजहण्णा ? खेतेण' इति पाठः। ... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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