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४२४ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, १३, १३०. सुगमं । णियमा अजहण्णा असंखेजगुणब्भहिया ॥ १३०॥
कुदो ? अजोगिचरिमसमयकम्माणं जहण्णकालमेगसमयं पेक्खिदूण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागेणूणसागरोवमतिण्णिसत्तभागमेत्तहिदीए जहण्णखेत्तसहचारिणीए असंखे. ज्जगुणत्तुवलंभादो।
तस्स भावदो किं जहण्णा अजहण्णा ॥१३१ ॥ सुगम । णियमा अजहण्णा अणंतगुणब्भहिया ॥ १३२॥
कुदो ? खवगपरिणामेहि पत्तघादअसादावेदणीयभावस्स अजोगिचरिमसमए जहण्णत्तभुवगमादो। जहण्णखेत्तवेयणीयभावस्स खवगपरिणामेहि घादाभावादो इमो भावो तत्तो अणंतगुणो त्ति दट्टयो ।
जस्स वेयणीयवेयणा कालदो जहण्णा तस्स दव्वदो किं जहण्णा अजहण्णा ॥१३३ ॥
सुगमं।
जहण्णा वा अजहण्णा वा, जहण्णादो अजहण्णा पंचट्ठाणपाददा॥ १३४॥
यह सूत्र सुगम है। वह नियमसे अजघन्य असंख्यातगुणी अधिक होती है ॥ १३० ॥
कारण कि अयोगकेवलीके अन्तिम समय सम्बन्धी कमों के एक समय रूप जघन्य कालकी अपेक्षा पल्योपमके असंख्यातवें भागसे हीन एक सागरोपमके सात भागोंमेंसे तीन भाग मात्र जघन्य क्षेत्रके साथ रहनेवाली स्थिति असंख्यातगुणी पायो जाती है।
उसके भावकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजधन्य ॥ १३१ ॥ यह सूत्र सुगम है। वह नियमसे अजघन्य अनन्तगुणी अधिक होती है ॥ १३२ ।।
कारण कि क्षपक परिणामोंके द्वारा घातको प्राप्त हुआ असातावेदनीयका भाव अयोगकेवलीके अन्तिम समयमें जघन्य स्वीकार किया गया है। अतएव जघन्य क्षेत्रके साथ रहनेवाले वेदनीयके भावका क्षपक परिणामोंके द्वारा घ.त न होनेसे यह भाव उससे अनन्तगुणा है, ऐसा समझना चाहिये।
जिस जीवके वेदनीयकी वेदना कालकी अपेक्षा जहण्ण होती है उसके वह क्या द्रव्यकी अपेक्षा जघन्य होती है या अजघन्य ॥१३३ ॥
यह सूत्र सुगम है।
वह जघन्य भी होती है और अजघन्य भी। जघन्यकी अपेक्षा अजघन्य पाँच स्थानों में पतित है ।। १३४ ॥
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