Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३२४ ] छक्खंडागमे वैयणाखंड
[४, २, १०, २० अणेयसमयपबद्धा उवसंताओ; सिया उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं पण्णारस भंगा [१५] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ । एवं सोलह भंगा [१६] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेषणाओ। एवं सत्तरह भंगा [१७] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंताओ; सिया उदिप्रणाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं अट्ठारह भंगा [१८] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी अणेयसमयपबद्धा उवसंताओ; सिया उदिण्णाओ च उपसंताओ च वेयणाओ। एवमेकोणवीस भंगा [१९] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ । एवं वीस भंगा [२०] । अधा, अणेयाणं जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ । एवमेकवीस भंगा [२१] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमणेयाओ पयडीओ अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशन्त वेदनायें हैं। इस प्रकार पन्द्रह भंग हुए ( १५ ) । अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति अनेक समयों में बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं । इस प्रकार सोलह भंग हुए (१६) । अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति अनेक समयों में बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण
और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार सत्तरह भंग हुए (१७) । अथवा, अनेक जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समय में बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार अठारह भंग हुए (१८)। अथवा, अनेक जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें है। इस प्रकार उन्नीस भंग हुए (१६)। अथवा, अनेक जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं । इस प्रकार बीस भंग हुए (२०) । अथवा, अनेक जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशांत; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार इक्कीस भंग हुए (२१)। अथवा, अनेक
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