Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, १३, ७४.] वेयणसण्णियासविहाणाणियोगदारं
[४०५ दव्व-खेत्त-काल-भावुक्कस्ससामित्तएहि विसेसामावादो ।
जस्स आउअवेयणा दव्वदो उक्कसा तस्स खेत्तदो किमुक्कस्सा अणुक्कस्सा ॥ ७१ ॥
सुगमं । णियमा अणुक्कस्सा असंखेजगुणहीणा ॥ ७२ ॥
कुदो णियमेण खेत्तस्स अणुक्कस्सत्तं ? लोगपूरणगदसजोगिकेवलिम्हि जादुक्कस्सखेत्तस्स उक्कस्सदव्यसामिजलचरम्मि अणुवलंभादो। असंखेज्जगुणहीणतं कत्तो णचदे ? उक्कस्सदवसामिजलचरखेत्तेण संखेज्जघणंगुलमत्तेण घणंगलस्स संखेज्जदिभागमेत्तण वा घणलोगे भागे हिदे असंखेज्जाबोवलंभादो।
तस्स कालदो किमुक्कस्सा अणुक्कस्सा ॥७३॥ सुगम। णियमा अणुक्कस्सा असंखेजगुणहीणा ॥ ७४ ॥
जलचरेसु उक्कस्सदव्वसामिएसु उक्कस्सहिदिबंधो किण्ण जायदे ? ण, आउअस्स पुव्वकोडितिभागमावाहं काऊण तेत्तीससागरोवमेसु बज्झमाणेसु चेव उक्कस्स. गोत्र कर्मों के विषयमें भी करना चाहिये, क्योंकि द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव सम्बन्धी उत्कृष्ट स्वामित्त्वसे उसमें कोई विशेषता नहीं है।
जिस जीवके आयु कर्मको वेदना द्रव्यसे उत्कृष्ट होती है उसके वह क्या क्षेत्रसे उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ॥ ७१ ॥
यह सूत्र सुगम है। वह नियमसे अनुत्कृष्ट असंख्यातगुणी हीन होती है ॥ ७२ ॥ शंका-क्षेत्रकी नियमित अनुत्कृष्टता कैसे सम्भव है ?
समाधान-इसका कारण यह है कि लोकपूरण समुद्घातको प्राप्त सयोगकेवलीके जो उत्कृष्ट क्षेत्र होता है वह उत्कृष्ट द्रव्यके स्वामी जलचर जीवमें नहीं पाया जाता।
शंका-उसकी असंख्यातगुणहीनता किस प्रमाण से जानी जाती है ?
समाधान-उत्कृष्ट द्रव्यके स्वामी जलचर जीवका जो संख्यात घनांगुल प्रमाण अथवा घनांगुलके संख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र होता है उसका घनलोकमें भाग देनेपर चूंकि असंख्यात रूप पाये जाते हैं, अतः इससे उसकी असंख्यातगुणी हीनता सिद्ध है।।
उसके उक्त वेदना कालकी अपेक्षा क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ॥ ७३ ॥ यह सूत्र सुगम है। वह नियमसे अनुत्कृष्ट असंख्यातगुणी हीन होती है ॥ ७४ ॥ शंका-जो जलचर जीव उत्कृष्ट द्रव्यके स्वामी हैं उनमें उत्कृष्ट द्रव्यका बन्ध क्यों नहीं होता? समाधान-नहीं, क्योंकि, पूर्वकोटिके विभाग प्रमाण आयुकी आबाधाको करके तेतीस
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