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४, २, १३, ७८.] वेयणसण्णियासविहाणाणियोगदारं
[४०७ जस्स आउअवेयणा खेत्तदो उक्कस्सा तस्स दव्वदो किमुक्कस्सा अणुक्कस्सा ॥७७॥
सुगम ।
णियमा अणुक्कस्सा विट्ठाणपदिदा संखेजगुणहीणा वा असंखेजगुणहीणा वा ॥ ७८ ॥
दबवेयणा उक्कस्सा किण्ण जायदे ? ण, दोहि आउअबंधगद्धाहि उक्कस्सजोगविसिट्ठाहि जलचरेसु संचिदुक्कस्सदव्वस्स केवलिम्हि तिहुवणं पसरिय द्विदम्मि संभवविरोहादो। कधं संखेज्जगणहीणतं ? ण, उक्कस्सजोगेण उक्कस्सबंधगद्धाए मणुसाउअंबंधिय मणुसेसु उप्पन्जिय गब्भादिअहवस्सेहि संजमं घेत्तूण सव्वलहुमंतोमुहुत्तेण कालेण केवलणाणमुप्पाइय लोगमावूरिय द्विदम्मि जं दव्वं तस्स संखेन्जगुणहीणत्त्वलंभादो। दोहि बंधगद्धाहि संचिदुक्कस्सदव्वादो एदमेगबंधगद्धासंचिददव्वं किचूणद्धमेत्तं होदण मणुस्सेसु गलिदबहुसंखेज्जदिभागत्तादो संखेज्जगुणहीणं होदि ति भणिदं होदि। जहण्णबंधगद्धाए बद्धे वि उक्कस्सदव्वादो तिहुवणगयजिणोउवदव्वं' संखेज्ज
जिस जीवके आयुकी वेदना क्षेत्रको अपेक्षा उत्कृष्ट होती है उसके वह द्रव्यकी अपेक्षा क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ॥ ७७ ॥
• यह सूत्र सुगम है। _ वह नियमसे अनुत्कृष्ट संख्यातगुणहीन व असंख्यातगुणहीन इन दो स्थानोंमें पतित होती है ॥ ७८ ॥
शंका-द्रव्यवेदना उत्कृष्ट क्यों नहीं होती है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, उत्कृष्ट योगसे विशेषताको प्राप्त हुए दो आयुबन्धक कालोंके द्वारा जो उत्कृष्ट द्रव्य जलचर जीवोंमें संचयको प्राप्त है उसकी तीन लोकोंमें फैलकर स्थित हुए केवलीमें सम्भावना नहीं है।
शंका-वह संख्यातगुणा हीन कैरने है ?
समाधान नहीं, क्योंकि, उत्कृष्ट योगके द्वारा उत्कृष्ट बन्धककालमें मनुष्यायुको बाँधकर मनुष्योंमें उत्पन्न हो गर्भसे लेकर आठ वर्षों में संयमको ग्रहणकर सर्वलघु अन्तर्मुहूर्त कालमें केवलज्ञानको उत्पन्नकर लोकको पूर्ण करके स्थित हुए केवलीमें जो द्रव्य होता है वह संख्यातगुणा हीन पाया जाता है। दो बन्धककालों द्वारा संचयको प्राप्त हुए उत्कृष्ट द्रव्यकी अपेक्षा यह एक बन्धककाल द्वारा संचित द्रव्य कुछ कम अर्ध भाग प्रमाण होकर मनुष्योंमें संख्यात बहुभागके गल जानेसे संख्यातगुणा हीन होता है, यह उसका अभिप्राय है।
_ शंका-जघन्य बन्धक कालके द्वारा बाँधनेपर भी उत्कृष्ट द्रव्यकी अपेक्षा लोक परणसमुद्घातमें वर्तमान केवलीका आयु द्रव्य चूंकि संख्यातगुणा हीन ही होता है, अतः उसकी असंख्यातगुणहीनता कैसे सम्भव है ?
१ अ-बा-ताप्रतिषु 'जिणावुवदव्वं' इति पाठः।
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