Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे बेपणाखंड [४, २, १३, १०७. सुगमं । णियमा अजहण्णा अणंतगुणब्भहिया ॥ १०७॥
कुदो? जहण्णक्खेत्तसहचारिणाणावरणीयअणुभागस्स अपुधकरण-अणियट्टिकरणसुहुमसांपराइय-खीणकसायपरिणामेहि खंडयसरूवेण अणुसमओवट्टणाए च जहण्णाणुभागस्सेव धादाभावादो। सुहुमणिगोदअपज्जत्तयस्स अणुभागो वि घादं पत्तो तो वि जहण्णाणुभागादो अणंतगुणत्तं मोत्तूण ण सेसपंचअवस्थाविसेसे पडिवज्जदे, अक्खवगविसोहीहि धादिज्जमाण-'अणुमागस्स खवगेहि घादिज्जमाण-अणुभागंपेक्खिदण अणंतगुणत्तुवलंभादो' । एत्थ उवउज्जती गाहा
(सुहुमणुभागादुवरि अंतरमकादं ति उघादिकम्माणं।
कैवलिणो वि य उवरिं भवओग्गह अप्पसत्थाणं ।।५।।) जस्स णाणावरणीयवेयणा कालदो जहण्णा तस्स दव्वदो किं जहण्णा अजहण्णा ॥ १०८ ॥
सुगम ।
जहण्णा वा अजहण्णा वा, जहण्णादो अजहण्णा पंचहाणपदिदा अणंतभागब्भहिया वा असंखेज्जभागब्भहिया वा संखेजभागब्भहिया वा संखेजगुणब्भहिया वा असंखेजगुणब्भहिया वा ॥ १०६ ॥
यह सूत्र सुगम है। वह नियमसे अजघन्य अनन्तगुणी अधिक होती है ॥ १०७ ॥
कारण कि जघन्य क्षेत्रके साथ रहनेवाले ज्ञानावरणीयके अनुभागका अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसाम्परायिक और क्षीणकषाय परिणामों द्वारा काण्डक स्वरूपसे और अनुसमयापवर्तनासे जघन्य अनुभागके समान घात नहीं होता है। यद्यपि सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्तकका अनुभाग भी घातको प्राप्त हो चुका है तो भी वह जघन्य अनुभागकी अपेक्षा अनन्तगुणत्वको छोड़कर शेष पाँच अवस्थाविशेषोंमें प्राप्त नहीं होता है, क्योंकि, अक्षपकके विशुद्ध परिणामों द्वारा घाता जानेवाला अनुभाग क्षपकों द्वारा घाते जानेवाले अनुभागकी अपेक्षा अनन्तगुणा पाया जाता है। यहाँ उपयोगी गाथा
............॥५॥ जिस जीवके ज्ञानावरणीयकी वेदना कालकी अपेक्षा जघन्य होती है उसके वह द्रव्यकी अपेक्षा जघन्य होती है या अजघन्य ॥१०८ ।।
यह सत्र सुगम है।
वह जघन्य भी होती है और अजघन्य भी। जघन्यकी अपेक्षा अजघन्य अनन्तभाग अधिक, असंख्यातभाग अधिक, संख्यातभाग अधिक, संख्यातगण अधिक और असंख्यातण अधिक, इन पाँच स्थानों में पतित है ॥ १० ॥
१ अपा-काप्रतिषु - ज्जमाण अणुभागं इति पाठः । २ अ-श्रा-काप्रतिषु 'अणतगुणहीणत्तवलभादो इनि पाठः । ताप्रती 'मकदं तिघादि-' इति पाठः । ४ मप्रतौ 'चवोग्गह' इति पाठः।
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