Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे वेयणाखंड
३२८ ] [ ४, २, १०, २३. च उदिण्णा च उवसंताओ च वेयणाओ । एवं विदियसुत्तस्स पढमभंगो [१] । अधवा, यस जीवस्स एया पयडी 'एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्सेव जीवस्स एया पयडी एकसमयपबद्धा उदिण्णा, तस्स चेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपवद्धाओ वसंताओ, सिया बज्झपाणिया च उदिण्णा च उवसंताओ च वेयणाओ । एवं वे भंगा [२] | अधवा, एयजीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्स चैव जीवस्स एया पयडी एयसमयपत्रद्धा उदिण्णा, तस्स चेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उवसंताओ, सिया बज्झमाणिया च उदिण्णा च उवसंताओ च वेयणाओ । एवं विदियसुत्तस्स तिण्णि चैव भंगा [३] । कुदो १ बज्झमाण - उदिण्णेसु एयवयणणिरोधादो |
सिया बज्झमाणिया च उदिण्णाओ च उवसंता च ॥ २३ ॥
एदस्स तदियसुत्तस्स भंगपमाणपरूवणं कस्सामो । तं जहा – एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्सेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तस्स चैव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंता; सिया बज्माणिया च उदिण्णाओ च उवसंता च वेयणाओ । एवं तिसंजोगत दियसुत्तस्स पढमो भंग [१] । अधवा, यस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्सेव जीवस अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तस्स चैव जीवस्स एया पयडी एयसमयबद्धा उवसंता सिया बज्झमाणिया च उदिण्णाओ च उवसंताच बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनाऐं हैं । इस प्रकार द्वितीय सूत्रका प्रथम भंग है । अथवा, एक जीवकी एक प्रकृति एक समय में बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समय में बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समय में बाँधी गई उपशान्तः कथचित् बध्यमान, उदीर्ण, और उपशान्त वेदनाऐं हैं। इस प्रकार दो भंग हुए ( २ ) । अथवा, एक जीवकी एक प्रकृति एक समय में बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समय में बाँधी उदीर्ण, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समय में बाँधी गई उपशान्त; कथञ्चित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनाऐं हैं । इस प्रकार द्वितीय सूत्रके तीन ही भंग होते हैं (३), क्योंकि, बध्यमान और उदीर्ण में एक वचनकी विवक्षा है | कथंचित् etara ( एक ),
उदीर्ण ( अनेक ) और उपशान्त ( एक )
वेदना है ।। २३ ॥
इस तृतीय सूत्रके भंगों के प्रमाणकी प्ररूपणा करते । वह इस प्रकार है- एक जीवकी एक प्रकृति एक समय में बाँधी गई वध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयों में बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समय में बाँधी गई उपशान्त, कथश्चित् बध्यमान, उदीर्ण । और उपशान्त वेदनाऐं हैं । इस प्रकार तीनोंके संयोग रूप तृतीय सूत्रका यह प्रथम भंग है ( १ ) अथवा, एक जीवकी एक प्रकृति एक समय में बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समय में बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समय में बाँधी गई उपशान्त; १. श्रापत्योः 'एया' इति पाठः ।
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