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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, १३, ५२.
३६८ ] जहा - गुणिदकम्मंसियो सचमपुढवीदो आगंतूण पंबिंदियतिरिक्खेसु अंतोमुहुत्तमच्छिय पुणो बादरपुढ विकाइएसु अंतोमुहुत्ताउअं बंधिय तत्थ उपज्जिय पच्छा मणुसेसु वासधत्ताअं बंधि कालं कादूणुप्पज्जिय संजमं घेत्तूण खवगसेडिमारुहिय केवलणाणं उपाय लोगपूरणं गदस्स खेत्तमुक्कस्सं जादं । तस्समए दन्वमसंखेज्जभागहीणं, उक्कसदव्वं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण खंडिय तत्थ एगखंडेण परिहीणउक्कस्तदव्यधारणादो | एवं संखेज्जभागहीण-संखेज्जगुणहीण असंखेज्जगुणहीणदव्वाणं पि जाणिदूण
परूवणा कायव्त्रा ।
तस्स कालदो किमुकस्सा अणुक्कस्सा ॥ ५२ ॥
सुमं ।
णियमा अकस्सा असंखेजगुणहीणा ॥ ५३ ॥
कुदो ! लोगपूरणाए वमाणअंतोमुहुत्तमेत्तट्ठिदीए 'तीसंकोडा कोडिसागरोबमेहिंतो असंखेज्जगुणहीणत्तुत्रलंभादो ।
तस्स भावदो किमुकस्सा अणुकस्सा ॥ ५४ ॥ सुगमं ।
कस्सा भाववेयणा ॥ ५५ ॥
की सातवीं पृथिवीसे आकरके पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंमें अन्तर्मुहूर्त रहकर फिर बादर पृथिवीकायिक जीवों में अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आयुको बन्धकर उनमें उत्पन्न हुआ । पश्चात् जब वह मनुष्यों में वर्ष पृथक्त्व आयुको बाँधकर मरणको प्राप्त हो उनमें उत्पन्न होकर संयमको ग्रहण करके क्षपकश्रेणिपर चढ़कर केवलज्ञानको उत्पन्न करके लोकपूरण अवस्थाको प्राप्त होता है तब उसका क्षेत्र उत्कृष्ट होता है । उस समय में द्रव्य असंख्यातवें भागसे हीन होता है, क्योंकि, उत्कृष्ट द्रव्यको पल्योपमके असंख्यातवें भागसे खण्डितकर उसमेंसे वह एक खण्डसे हीन उत्कृष्ट द्रव्यको धारण करता है । इसी प्रकारसे संख्यात भागहीन, संख्यातगुणहीन और असंख्यातगुणहीन द्रव्योंकी भी प्ररूपणा जान करके करनी चाहिये ।
उसके कालकी अपेक्षा उक्त वेदना क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ॥ ५२ ॥ यह सूत्र सुगम है ।
वह नियमसे अनुत्कृष्ट असंख्यातगुणी हीन होती है ॥ ५३ ॥
कारण कि लोकपूरण अवस्थामें रहनेवाली अन्तर्मुहूर्त मात्र स्थिति तीस कोड़ाकोड़ि सागरोपमोंकी अपेक्षा असंख्यातगुणी होन पायी जाती है ।
उसके भावकी अपेक्षा वह क्या उत्कृष्ट होती है या अनुस्कृष्ट ॥ ५४ ॥
यह सूत्र सुगम है ।
उसके भाव वेदना उत्कृष्ट होती है ।। ५५ ।।
१-काप्रतिषु 'तीसं' इति पाठः ।
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