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४, २, १३, ६०.] वेयणसण्णियासविहाणाणियोगहारं
[४०१ जस्स वेयणीयवेयणा कालदो उकस्सा तस्स दव्वदो किमुक्कस्सा अणुकस्सा ॥५६॥
सुगमं । उक्कस्सा वा अणुकस्सा वा ॥ ५७॥
जदि णेरइयचरिमसमए गुणिदकम्मंसिए कयउक्कस्सदव्ये वेयणीयस्स उक्कस्सओ द्विदिबंधो दीसदि तो कालेण सह दव्वं पि उक्कस्सं होदि अध तत्तो हेट्टा उवरिं वा जदि उक्कस्सट्ठिदी बज्झदि तो उक्कस्सियाए कालवेयणाए उक्कस्सिया दव्ववेयणा ण लब्भदि त्ति अणुक्कस्सा त्ति' भणिदं ।
उकस्सादो अणुकस्सा पंचट्ठाणपदिदा ॥ ५८ ॥
काणि पंचट्ठाणाणि ? अणंतभागहाणि-असंखेज्जभागहाणि-संखेज्जभागहाणि-संखोज गुणहाणि-असंखेज्जगुणहाणि त्ति पंचट्टाणाणि। एदेसिं ठाणाणं परूवणा जहा णाणावरणीयस्स परूविदा तहा परूवेदव्वा ।।
तस्स खेत्तदो किमुक्कस्सा अणुकस्सा ॥ ५६ ॥ सुगम । णियमा अणुक्कस्सा असंखेजगुणहीणा ॥ ६० ॥
जिसके वेदनीयकी वेदना कालकी अपेक्षा उत्कृष्ट होती है उसके द्रव्यकी अपेक्षा वह क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ॥५६॥
यह सूत्र सुगम है। वह उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी ॥ ५७॥
यदि नारक भवके अन्तिम समयमें उत्कृष्ट द्रव्यका संचय करनेवाले गुणितकर्माशिकके वेदनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध दिखता है तो कालके साथ द्रव्य भी उत्कृष्ट होता है। परन्तु यदि उत्कृष्ट स्थिति उससे नीचे या ऊपर बंधती है तो उत्कृष्ट कालवेदनाके साथ उत्कृष्ट द्रव्यवेदना नहीं पायी जाती है, अतएव सूत्र में 'अनुरकृष्ट' ऐसा कहा है।
उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट पांच स्थानोंमें पतित है ॥ ५८ ॥
वे पाँच स्थान कौनसे हैं ? अनन्तभागहानि, असंख्यातभागहानि, संख्यातभागहानि, संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानि ये वे पाँच स्थान हैं। इन स्थानोंकी प्ररूपणा जैसे ज्ञानावरणीयके विषयमें की गई है वैसे ही यहाँ भी प्ररूपणा करनी चाहिये।
उसके क्षेत्रकी अपेक्षा वह क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ।। ५९ ॥ यह सूत्र सुगम है। वह नियमसे अनुत्कृष्ट असंख्यातगणी हीन होती है ॥ ६०॥ १ ताप्रतौ 'लब्भदि त्ति भणिद' इति पाठः । छ. १२-५१
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