Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, १३, १३.] वेयणसण्णियासविहाणाणियोगहारं
[३७६ उकस्सादो अणुकस्सा समऊणा ॥ १०॥
दुसमऊणादिवियप्पा किण्ण लब्भंते ? ण, णेरइयदुचरिमसमयम्मि उक्तस्सदव्वमिच्छिय उक्कस्ससंकिलेसे णियमिदम्मि उक्कस्सहिदि मोत्तूण अण्णद्विदीणं बंधाभावादो। ण च दुचरिमसमर उक्कस्सद्विदीए बंधीए' संतीए चरिमसमर समऊणत्तं मोत्तूण दुसमऊणत्तादिवियप्पो संभवदि, अधहिदीए' दुवादिहिदीणमकमेण गलणाभावादो ।
तस्स भावदो किमुक्कस्सा अणुकस्सा ॥११॥ सुगममेदं । उकस्सा वा अणुकस्सा वा ॥ १२ ॥
जदि दुचरिमसमयणेरइयो उकस्ससंकिलेसेण उकस्सविसेसपच्चएण उक्कस्साणुभागं बंधदि तो भाववेयणा उक्कस्सा होदि। अध णस्थि उक्कस्सविसेसपञ्चओ तो णियमा अणुक्कस्सा त्ति भणिदं होदि । उक्कस्सं पेक्खिदूण अणुक्कस्सभावो छबिहासु हाणीसु कत्थ होदि ति पुच्छिदे तण्णिण्णयत्थमुत्तरसुत्तं भणदि
उक्कस्सादो अणुक्कस्सा छहाणपदिदा ॥ १३ ॥ उक्कस्सं पेक्खिदूण अणुक्कस्सभावो अणंतभागहीण-असंखेज्जभागहीण-संखेज्जभागवह उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट एक समय हीन होती है ॥ १० ॥ शंका-यहां दो समय हीन आदि विकल्प क्यों नहीं पाये जाते ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, नारक भक्के द्वि चरम समयमें उत्कृष्ट द्रव्यका बन्ध हुआ ऐसा मान लेनेपर उत्कृष्ट संक्लेशके नियमित होनेपर वहां उत्कृष्ट स्थितिको छोड़कर अन्य स्थितियोंका बन्ध नहीं होता। और जब द्विचरम समयमें उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध हुआ तो चरम समयमें एक समय हीन विकल्पको छोड़कर दो समय हीन आदि विकल्पोंकी सम्भावना ही नहीं है, क्योंकि, अधःस्थिति गलनाके द्वारा एक साथ दो आदिक स्थितियोंका गलन नहीं हो सकता।
उसके भावकी अपेक्षा वह क्या उत्कृष्ट होती है अथवा अनुत्कृष्ट ॥ ११ ॥ यह सूत्र सुगम है। उत्कृष्ट भी होती है अनुत्कृष्ट भी ॥ १२ ॥
यदि द्विचरम समयवर्ती नारकी जीव उत्कृष्ट संक्लेशके द्वारा और उत्कृष्ट विशेष प्रत्ययके द्वारा उत्कृष्ट अनुभागको बाँधता है तो उसके भाव वेदना उत्कृष्ट होती है। यदि उसके उत्कृष्ट विशेष प्रत्यय नहीं है तो नियमसे अनुत्कृष्ट वेदना होती है, यह उक्त सूत्रका अभिप्राय हैं। उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट भाव छह प्रकारकी हानियोंमेंसे किस हानिमें होता है, ऐसा पूछनेपर उसका निर्णय करने के लिये आगेका सूत्र कहते हैं
वह उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट वेदना षट्स्थानपतित होती है ॥ १३॥ उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट भाव अनन्तभागहीन, असंख्यातभागहीन, संख्यातभाग१ काप्रतौ 'वंतीए' इति पाठः । २ अ-श्रा-ताप्रतिषु 'अवहिदीए' इति पाठः ।
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