Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 414
________________ [३८१ ४,२, १३, १६.] वेयणसण्णियासविहाणाणियोगद्दारं हाइदूण बंधे उक्कस्साणुभागादो एसो अणुभागो असंखेज्जमागहीणो । पुणो ततो हेट्ठिमपक्खवे परिहाइदण बद्धे वि असंखेज्जभागहाणी चेव । एवमसंखेज्जमागहाणीए' कदंयाहियकंदयमेत्तट्ठाणाणि ओसरिदूण जाव बंधदि ताव गिरंतरमसंखेज्जभागहाणी चेव होदि । तत्तो हेट्ठा संखेज्जभागहाणी चेव जाव पढमदुगुणहाणिं ण पावेदि । तम्हि पत्ते' य संखेज्जगुणहाणी होदि । एवमेदेण विहाणेण ओदारेदव्वं जाव उक्कस्ससंखेज्जगुणहीणहाणं पत्तं त्ति । तदो समयाविरोहेण हेट्ठा ओदरिदूण पढमसंखेज्जगुणहीणहाणं होदि । एवमसंखज्जगुणहीणकमेण ताव ओदारेदव्यं जाव चरिमअसंखेज्जगुणहीणट्ठाणं पत्तं त्ति । पुणो हेहिमउव्वंके बद्ध अणंतगुणहीणट्ठाणं होदि । एवमेत्तो प्पहुडि अणंतगुणहीणं होदूण ताव गच्छदि जाव असंखेज्जलोगमेत्तछट्ठाणाणि ओसरिदूण बद्धाणि त्ति । जस्स णाणावरणीयवेयणा खेत्तदो उकस्सा तस्स दव्वदो किमुकस्सा अणुकस्सा ॥ १५ ॥ सुगममेदं पुच्छासुत्तं । णियमा अणुकस्सा ॥१६॥ उक्कस्सा ण होदि, महामच्छम्मि उक्तस्सओगाहणम्मि अट्ठमरज्जुआयामेण सत्तमपूढविं पडि मुक्कमारणंतियम्मि गुणिदुक्कस्ससंकिलेसाभावेण दव्वस्स उक्कस्सत्तविरोहादो। बाँधनेपर उत्कृष्ट अनुभागकी अपेक्षा यह अनुभाग असंख्यातभागहीन होता है। पश्चात् उससे नीचेके प्रक्षेपोंको हीन करके बाँधनेपर भी असंख्यातभागहानि ही होती है। इस प्रकार जब तक वह असंख्यातभागहानिसे एक काण्ड कसे अधिक काण्डक प्रमाण स्थान नीचे उतरकर अनुभाग बाँधता है तब तक निरन्तर असंख्यातभागहानि ही होती है। किन्तु उसके नीचे प्रथम दुगुणहानिके प्राप्त होने तक संख्यातभागहानि ही होती है और दुगुणहानिके प्राप्त होनेपर संख्यातगुणहानि होती है। इस प्रकार इस विधिसे उत्कृष्ट संख्यातगुणहीन स्थानके प्राप्त होने तक उतारना चाहिये। तत्पश्चात् समयाविरोधसे नीचे उतरकर प्रथम असंख्यातगुणहीन स्थान होता है। इस प्रकार असंख्यातगुणहीन क्रमसे तब तक उतारना चाहिये जब तक कि अन्तिम असंख्यातगुणहीन स्थान प्राप्त नहीं होता है। पश्चात् अधरतन ऊवकका बन्ध होनेपर अनन्तगुणहीन स्थान होता है। इस प्रकार यहां से लेकर अनन्तगुण हीन होकर तब तक जाता है जब तक कि असंख्यात लोक प्रमाण छह स्थान नीचे उतर कर स्थान बंधते हैं। जिस जीवके ज्ञानावरणीयकी वेदना क्षेत्रकी अपेक्षा उत्कृष्ट होती है उसके वह द्रव्यकी अपेक्षा क्या उत्कृष्ट होती है अथवा अनुत्कृष्ट ॥१५॥ यह पृच्छासूत्र सुगम है। .. वह नियमसे अनुत्कृष्ट होती है ॥१६॥ वह उत्कृष्ट नहीं होती है, क्योंकि, उत्कृष्ट अवगाहनावाले महामत्स्यके साढ़ेसात राजु प्रमाण आयामसे सातवीं पृथिवीके प्रति मारणान्तिक सामुद्घातके करनेपर वहाँ गुणित उत्कृष्ट १ ताप्रती 'बद्ध वि असंखेजभागहाणीए' इति पाठः। २ तातौ 'पत्तेयासंखेज' इति पाठः। ३ अप्रतौ 'श्रोदारिय', काप्रतौ त्रुटितोऽत्र जातः पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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