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३८४] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, १३, १८. ज्जगुणहाणी होदि । एत्तो प्पहुडि असंखेज्जगुणहीणं होदण दव्वं गच्छदि जाव तप्पा
ओग्गपलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण ओघुक्कस्सदव्वं खंडिय तत्थ एगखंडेण सह उक्कस्सखेत्तं कादण द्विदो त्ति । एदं जहण्णदव्वं केण लक्खणेण आगदस्स होदि त्ति भणिदे एगो जीवो खविदकम्मंसियलक्खणेण आगंतूण विवरीयगमणपाओग्गणिब्वियप्पकालावसेसे विवरीदं गंतूण महामच्छेसु उप्पज्जिय उक्कस्सखेत्तं कादण अच्छिदो तस्स होदि । एत्तो हेट्ठा एवं दव्वं ण हायदि, उक्कस्सदव्वादो णिव्ययप्पमसंखेज्जगुणहीणत्तमुवणमिय ट्टिदत्तादो। जम्हि जम्हि सुत्ते दव्वं चउट्टाणपदिदमिदि भणिदं तम्हि तम्हि एसो एत्थ उत्तकमो अवहारिय परूवेदव्यो ।
तस्स कालदो कि उकस्सा अणकस्सा ॥१८॥ एदं पुच्छासुत्तं सुगमं । उक्कस्सा वा अणुकस्सा वा ॥ १६ ॥ जदि उक्कस्सखेत्तं कादण द्विदमहामच्छो उक्कस्ससंकिलेसं गच्छदि तो णाणावरणीयवेयणा कालदो उक्कस्सिया चेव होदि, चरिमद्विदिपाओग्गपरिणामेसु पलिदोवमस्त असंखेज्जदिमागेण खंडिदेसु तत्थ चरिमखंडपरिणामेहि उकस्सहिदि मोत्तण अण्ण द्विदीणं बंधाभावादो। अह चरिमखंडपरिणामे मोत्तूण जदि अण्णेहि परिणामेहि द्विदिं बंधदि यहांसे लेकर तत्प्रायोग्य पल्योपमके असंख्यातवें भागसे ओघ उत्कृष्ट द्रव्यको खण्डित करके उसमेंसे एक खण्डके साथ उत्कृष्ट क्षेत्रको करके स्थित होने तक द्रव्य असंख्यातगुणा हीन होकर जाता है।
शंका-यह जघन्य द्रव्य किस स्वरूपसे आगत जीवके होता है ?
समाधान-ऐसा पूछे जानेपर उत्तरमें कहते हैं कि जो एक जीव क्षपितकर्माशिक स्वरूपसे आकरके विपरीत गमनके योग्य निर्विकल्प कालके शेष रहनेपर विपरीत गमन करके महामत्स्योंमें उत्पन्न होकर उत्कृष्ट क्षेत्रको करके स्थित है उसके उक्त जघन्य द्रव्य होता है।
इसके नीचे यह द्रव्य होन नहीं होता है, क्योंकि, वह उत्कृष्ट द्रव्यकी अपेक्षा निर्किल्प असं.
हीनताको प्रप्त होकर स्थित है । जिस जिस सूत्रमें 'द्रव्य चतुःस्थानपतित है। ऐसा कहा गया है उस उस सूत्रमें यहाँ कहे गये इस क्रमका निश्चय करके प्ररूपणा करनी चाहिये ।
उसके उक्त वेदना कालकी अपेक्षा-क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ॥१८॥ यह पृच्छासूत्र सुगम है। उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी ॥ १९ ॥
यदि उत्कृष्ट क्षेत्रको करके स्थित महामस्य उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होता है तो ज्ञानावरणीयकी वेदना कालकी अपेक्षा उत्कृष्ट ही होती है, क्यों कि, अन्तिम स्थिति के योग्य परिणामों को पल्योपमके असंख्यातवें भागसे खण्डित करनेपर उनमें अन्तिम खण्ड सम्बन्धी परिणामोंके द्वारा उत्कृष्ट स्थितिको छोड़कर अन्य स्थितियोंका बन्ध नहीं होता और यदि वह अन्तिम खण्ड सम्बन्धी परिणामोंको छोड़कर अन्य परिणामों के द्वारा स्थितिको बाँधता है तो उक्त वदना कालकी
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