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३६०] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, १३, ३०. उक्कस्सखेत्तमुक्करससंखेन्जेण खंडिय तत्थ एगखंडेण परिहीण उक्कस्सक्खेत्तं द्विदं ति । तत्तो प्पहुडि हेट्ठा संखेजभागहाणीए गच्छदि जाव उक्कस्सखेत्तस्स दोस्वभागहारो जादो त्ति । तदो पहुडि हेट्ठा संखेजगुणहाणी होदण गच्छदि जाव उकस्सखेत्तं जहण्णपरित्तासंखेजेण खंडेदूण एकखंडं द्विदं ति । तदो पहुडि असंखेजगुणहीणं होदूण गच्छदि जाव सत्थाणमहामच्छउक्कस्सओगाहणा त्ति । पुणो वि महामच्छोगाहणमेगेगपदेसेहि ऊणं करिय असंखेजगुणहाणीए णेदव्वं जाव सित्थमच्छस्स सव्वजहण्णसत्थाणोगाहणो' त्ति। पुणो सव्वपच्छिमवियप्पो वुच्चदे । तं जहा-सित्थमच्छेण सव्वजहण्णोगाहणाए वट्टमाणेण णाणावरणुक्कस्सहिदीए पवद्धाए कालवेयणा उक्कस्सा जादा । खेत्तवेयणा पुण णिव्वियप्पअसंखेजगुणहीणत्तमुवगया।
तस्स भावदो किमुक्कस्सा अणकस्सा ॥३०॥ सुगम । उक्कस्सा वा अणकस्सा वा ॥ ३१ ॥
जदिउक्कस्सट्ठिदीए सह उक्कस्ससंकिलेसेण उक्कस्सविसेसपञ्चएण उक्कस्साणुभागो पबद्धो तो कालवेयणाए सह भावो वि उक्कस्सो होदि । उक्कस्सविसेसपच्चयाभावे अणुक्कस्सो चेव ।
उक्कस्सादो अणुकस्सा छहाणपदिदा ॥ ३२ ॥ उत्कृष्ट स्थिति को बँधाकर उत्कृष्ट क्षेत्रको उत्कृष्ट संख्यातसे खण्डित करके उसमें एक खण्डसे हीन उत्कृष्ट क्षेत्रके स्थित होने तक ले जाना चाहिये। वहाँसे लेकर नीचे उत्कृष्ट क्षे अङ्क भागहार होने तक संख्यातभागहानिसे जाता है। फिर वहांसे लेकर नीचे उत्कृष्ट क्षेत्रको जघन्य परीतासंख्यातसे खण्डित कर उसमें एक खण्डके स्थित होने तक संख्यातगुणहानि होकर जाती है। फिर वहाँ से लेकर महामत्स्यकी उत्कृष्ट स्वस्थान अवगाहना तक असंख्यातगुणा हीन होकर जाता है । फिर भी महामत्स्यकी उत्कृष्ट अवगाहनाको एक एक प्रदेशोंसे हीन करके सिक्थ मस्यकी सर्वजघन्य स्वस्थान अवगाहना तक असंख्यात गुणहानिसे ले जाना चाहिये। अब सर्वपश्चिम विकल्पको कहते हैं। यथा-सर्वजघन्य अवगाहनामें विद्यमान सिक्थ मत्स्यके द्वारा ज्ञानावरणकी उत्कृष्ट स्थितिके बाँधे जानेपर कालवेदना उत्कृष्ट हो जाती है। परन्तु क्षेत्रवेदना विकल्प रहित असंख्यातगुणी हीनताको प्राप्त है।
उसके उक्त वेदना भावकी अपेक्षा क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ॥ ३० ॥ यह सूत्र सुगम है। वह उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी ॥ ३१ ॥
यदि उत्कृष्ट स्थितिके साथ उत्कृष्ट विशेष प्रत्ययरूप उत्कष्ट संक्लेशके द्वारा उत्कृष्ट अनुभाग बांधा गया है तो कालवेदनाके साथ भाव भी उत्कृष्ट होता है और उत्कृष्ट विशेष प्रत्ययके अभावमें भाव अनुकृष्ट ही होता है ।
वह उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट छह स्थानों में पतित है ॥ ३२ ॥ १ अ-श्रा-काप्रतिषु ‘सत्थाणोगाहणो' इति पाठः ।
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