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४, २, १३, ७.] वेयणसण्णियासविहाणाणियोगहारं
[ ३७७ एवं चउव्विहो चेव उक्कस्ससण्णियासो, दठव-खेत्त-काल-भावेहितो पुधभूद उक्स्स स्स एत्थ वेयणाए अणुवलंभादो ।
जस्स णाणावरणीयवेयणा दव्वदो उक्कस्सा तस्स' खेत्तदो किमुकस्सा अणुकस्सा ॥६॥
__जस्स णाणावरणीयदबवेयणा उक्कस्सा होदि तस्स जीवस्स णाणावरणीयखेत्तवेयणा किमुक्कस्सा चेव होदि आहो किमणुकस्सा चेव होदि ति एदं पुच्छासुत्तं । एवं पुच्छिदे तस्स पुच्छंतस्स संदेहविणासणहमुत्तरसुत्तं भणदि
णियमा अणुक्कस्सा असंखेजगुणहीणा ॥७॥
कुदो १ सत्तमाएं पुढवीए चरिमसमयणेरइयम्मि पंचधणुस्सयउस्सेहम्मि उक्कस्सदव्वुवलंभादो। उक्कस्सदव्वसामियस्स खत्तं संखेज्जाणि पमाणघणंगुलाणि । कुदो ? पंचधणुस्सदुस्सेहट्ठमभागविक्खंभखेत्ते समीकरणे कदे संखेज्जपमाणघणंगुलुवलंभादो । समुग्धादगदमहामच्छउक्कस्सक्खेत्तं पुण असंखेज्जाओ सेडीओ। कुदो ? अट्ठमरज्जुआयामेण संखेज्जपदरंगुलेसु गुणिदेसु असंखेज्जसेडिमेत्तखेत्तुवलंभादो। एवं महामच्छ उक्कस्सखेत्तं पेक्खि दूण णेरइयस्स उकस्सदव्वसामियस्स' उक्कस्सखेत्तमूणमिदि कट्ट णियमा खेत्तवेयणा अणुक्कस्सा त्ति भणिदं । होता वि तत्तो असंखेज्नगुणहीणा, उक्कस्सदव्यसामि
इस प्रकार उत्कृष्ट संनिकर्ष चार प्रकारका ही है, क्योंकि द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावसे पृथग्भूत उत्कृष्ट संनिकषे यहाँ वेदनामें नहीं पाया जाता।
जिसके ज्ञानावरणीयवेदना द्रव्यकी अपेक्षा उत्कृष्ट होती है, उसके वह क्षेत्रको अपेक्षा क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ॥६॥
जिस जीवके ज्ञानावरणीयकी द्रव्य वेदना उत्कृष्ट होती है उसके ज्ञानावरणीयकी क्षेत्रवेदना क्या उत्कृष्ट ही होती है अथवा अनुत्कृष्ट ही, इस प्रकार यह पृच्छासूत्र है। इस प्रकार पूछनेपर उस पूछनोवले शिष्यका सन्देह नष्ट करनेके लिये आमेका सूत्र कहते हैं
वह नियमसे अनुत्कृष्ट असंख्यातगुणी हीन होती है ॥ ७॥
क्योंकि, सातवीं पृथिवीमें पांचसौ धनुष ऊँचे अन्तिम समयवर्ती नारकीके उत्कृष्ट द्रव्य पाया जाता है । उत्कृष्ट द्रव्यके स्वामीका क्षेत्र संख्यात प्रमाणघनांगुल मात्र होता है, क्योंकि, पांच सौ धनुष ऊंचे और उसके आठवें भागमात्र विष्कम्भवाले क्षेत्रका समीकरण करनेपर संख्यात प्रमाण घनांगुल उत्पन्न होते हैं । परन्तु समुद्घाताको प्राप्त हुए महामत्स्यका उत्कृष्ट क्षेत्र असंख्यस्त जगश्रेणि प्रमाण है, क्योंकि, साढ़े सात राजु आयामसे संख्यात प्रतरांगुलोंको गुणित करनेपर असंख्यात जगणि प्रमाण क्षेत्र उपलब्ध होता है । इस प्रकार महामत्स्यके उत्कृष्ट क्षेत्रकी अपेक्षा उत्कृष्ट द्रव्यके स्वामी नारकीका उत्कृष्ट क्षेत्र चूंकि हीन है, अतएव 'क्षेत्र वेदना नियमसे अनुत्कृष्ट होती है' ऐसा कहा है । ऐसी होती हुई भी वह उससे असंख्यातगुणी हीन है, क्योंकि, उत्कृष्ट
१ प्रतिषु 'तत्थ' इति पाठः । २ प्रतिषु एवं' इति पाठः। ३ अ-श्रा-काप्रतिषु 'सामित्तस्स', ताप्रतौ 'सामिस्स' इति पाठः।
छ. १२-४८
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