Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
३५२] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, १०, ४१. सिया उदिण्णाओ च उवसंता च ॥४१॥
ऐदस्स तदियसुत्तस्स' भंगे वत्तहस्सामो । तं जहा-ऐयस्स जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपरद्धा उदिण्णाओ, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंता, सिया उदिण्णाओ च उवसंता' च वेयणाओ । एवमेगो भंगो [१]। अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी एय. समयपबद्धा उवसंता, सिया उदिण्णाओ च उवसंतो च वेयणाओ । एवं बे भंगा [२] एदस्स सुत्तस्स ।
सिया उदिण्णाओ च उवसंताओ च ॥ ४२ ॥
एदस्स चउत्थसुत्तस्स भंगे वत्तइस्सामो। तं जहा-एयस्स जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपवद्धा उवसंताओ; सिया उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवमेगो भंगो [१] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी अणेयसमयपबद्धा उवसंताओ; सिया उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं बे चेव भंगा [२] । उदिण्ण-उवसंताणं दुसंजोगचउत्थसुत्तस्स । संपहि तिसंजोगजणिदवेयणविहाणपरूवणमुत्तरसुत्तं भणदि
कथंचित् उदीर्ण ( अनेक ) और उपशान्त ( एक ) वेदनायें हैं ॥ ४१ ॥
इस तृतीय सूत्रके भङ्गोंको कहते हैं। यथा-एक जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार एक भङ्ग हुआ (१)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार इस सूत्रके दो भङ्ग हैं (२)।
कथंचित् उदीर्ण ( अनेक) और उपशान्त ( अनेक ) वेदनायें हैं ॥ ४२ ॥
इस चतुर्थ सूत्रके भङ्गोंको कहते हैं। यथा-एक जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार एक भंग हुआ (१)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण; उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उिपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार उदीर्ण और उपशान्त इन दोके संयोग रूप चतुर्थ सूत्रके दो ही भंग हैं (२)। अब तीनोंके संयोगसे उत्पन्न वेदनाके विधानकी प्ररूपणा करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
१ ताप्रतौ 'एदरस सुत्तस्स' इति पाठः। २ ताप्रतौ 'उवसंता [ो]' इति पाठः। ३ प्रतिषु 'समय पबद्धाश्रो' इति पाठः। ४ प्रतिषु 'उदिण्णा' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org