Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, १०,४६] वेयणमहाहियारे वेयणवेयणविहाणं
[ ३५५ पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंता; सिया बज्झमाणिया च उदिण्णाओ च उवसंता च वेयणाओ। एवमेगो भंगो [१] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी' अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंता; सियो बज्झमाणिया च उदिण्णाओ च उवसंता च वेयणाओ । एवमेदस्स सुत्तस्स बे चेव भंगा [२] ।
सिया बज्झमाणिया च उदिण्णाओ च उवसंताओ च ॥४६॥
एवमेदस्स चउत्थसुत्तस्स भंगपरूवणं कस्सामो। तं जहा-एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपत्रद्धा उदिण्णाओ, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा' उवसंताओ; सिया बज्झमाणिया च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ । एवमेगो भंगो [१] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी अणेयसमयपबद्धा उवसंताओ; सिया बज्झमाणिया च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार एक भंग हुआ (१)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति एक समय में बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार इस सूत्रके दो ही भङ्ग हैं (२)।
कथंचित् वध्यमान (एक), उदीर्ण ( अनेक ) और उपशान्त ( अनेक ) वेदनायें हैं ॥ ४६॥
इस प्रकार इस चतुर्थ सूत्रके भङ्गोंकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान; उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार एक भङ्ग हुआ (१)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं।
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१ताप्रतावतोऽग्रे 'एयसमयपबद्धा उदिण्णा तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी अणेयसमयपबद्धो उवसंताश्री सिया बज्झमाणिया च उदिण्णा च उवसंताश्रो च वेयणाश्रो, एवमेदस्स वे चेव भंगा २ इति पाठः। २ प्रतिषु '-पवद्धाश्रो' इति पाठः ।
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