Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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|१२|११२२१११२२॥
४, २, १०, ४३.] वेयणमहाहियारे वेयणवेयणविहाणं
[ ३५३ सिया बज्झमाणया च उदिण्णा च उवसता च ॥४३॥
एदस्स तिसंजोगपढमसुत्तस्स अत्थे भण्णमाणे बज्झमाण-उदिण्ण-उवसंताणमेगवयणेहिं उदिण्ण-उवसंताणं बहुवयणेहि ११९ जणिदतिसंजोगसुत्तस्स पत्थार ११११ बज्झ
"११२२/१
१२१२/ माण-उदिण्ण-उवसंताणं जीव-पयडि-समयपत्थारे च रविय |
|११|११११११११|
पच्छा
|११/१२१२/१२१२| भंगुष्पत्ति भणिस्सामो। तं जहा-एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्ममाणिया, तस्सेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उदिण्णा, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उपसंता; सिया बज्झमाणिया च उदिण्णा च उवसंता च वेय
कथंचित् वध्यमान, उदीणे और उपशान्त वेदना है॥४३॥ - तीनोंके संयोग रूप इस प्रथम सूत्रके अर्थकी प्ररूपणा करते समय बध्यमान, उदीर्ण और
वध्य० उदीर्ण उप० उपशान्त, इनके एकवचन तथा उदीर्ण और उपशान्त, इनके पहुवचन | एक | एक | एक | से।
• अनेक अनेक
बध्य० एक
एक
| एक
एक
उत्पन्न तीनोंके संयोग रूप सूत्रके प्रस्तार उदीर्ण एक | एक अनेक अनेक तथा बध्यमान, उदीर्ण और
उपशा एक |अनेक
बध्यमान
उदीर्ण
एक अनेक एक | एक अनेक अनेक उपशान्त सम्बन्धी जीव प्रकृति व समयके प्रस्तारों
प्रकृति एक | एक | एक | एक | एक | एक |
समय | एक | एक | एक अनेक एक अनेक को भी स्थापित करके पश्चात् भंगोंकी उत्पत्तिको कहते हैं। यथा-एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदना है।
छ, १२-१५।
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