Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, १०, ५२.] वेयणमहाहियारे वेयणवेयणविहाणं
[३५९ पत्थारं १ | तेसिं चेव जीव-पयडि-समयपत्थारं च ठविय १२ | १२ पच्छा परू
११ | ११ वणा कीरदे । तं जहा-एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उदिण्णा; सिया बज्झमाणिया च उदिण्णा च वेयणा । एवमेगो भंगो [१] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा उदिण्णा; सिया बज्झमाणिया च उदिण्णा च वेयणा । एवमेदस्स सुत्तस्स दो चेव भंगा होंति [२] ।
सिया बज्झमाणिया च उवसंता च ॥ ५२ ॥ एदस्स सुत्तस्स अत्थे भण्णमाणे बज्झमाण-उवसंताणं दुसंजोगपत्थारं || | तेसिं
बध्य०॥ संयोगसे उत्पन्न प्रस्तार
को तथा उनसे ही सम्बन्ध रखनेवाले जीव, प्रकृति और
बध्यमान
। उदीर्ण ।
जीव एक अनेक एक अनेक समय; इनके प्रस्तार
प्रकृति एक | एक | एक एक
को भी स्थापित करके पश्चात् यह प्ररू
समय एक | एक | एक
एक
पणा की जाती है। यथा-एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण; कथंचित् बध्यमान और उदीर्ण वेदना है। इस प्रकार एक भङ्ग हुआ (१) । अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, कथंचित् बध्यमान और उदीर्ण वेदना है। इस प्रकार इस सूत्रके दो ही भङ्ग होते हैं (२)।
कथंचित् बध्यमान और उपशान्त वेदना है ॥ ५२ ॥
इस सूत्रके अर्थकी प्ररूपणा करते समय बध्यमान और उपशान्त इन दोके संयोग रूप प्रस्तार ब० को तथा उन्हींसे सम्बन्ध रखनेवाले जीव, प्रकृति व समय इनके प्रस्तारको भी स्थापित
०४॥
१ श्रा-काप्रत्योः | ३ . तामती | २ | एवंविधोऽत्र प्रस्तारः ।
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