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३६६] छक्खंडागमे वेयणाखंडं
[४, २, ११, ३. त्ति । तदो सव्वे जीवपदेसा कम्हि वि काले अद्विदा होति ति सुत्तवयणं ण घडदे ? ण एस दोसो, ते अट्ठमज्झिमजीवपदेसे मोत्तूण सेसजीवपदेसे अस्सिदण एदस्स सुत्तस्स पवुत्तीदो । कधं पुण एसो अत्थविसेसो उवलब्भदे ? सियासहप्पओआदो ।
सिया हिदाहिदा ॥३॥
वाहि-वेयणा-सज्झसादिकिलेसविरहियस्स छदुमत्थस्स जीवपदेसाणं केसि पि चलणाभावादो तत्थ द्विदकम्मक्खंधा वि द्विदा चेव होति, तत्थेव केसिं जीवपदेसाणं संचालुवलंभादो तत्थ द्विदकम्मक्खंधा वि संचलंति, तेण ते अद्विदा ति भण्णंति । तेसिं दोणं समुदायो वेदणा त्ति एया होदि । तेण ठिदाहिदा ति दुस्सहावा भण्णदे। एत्थ जे अद्विदा' तेसिं कम्मबंधो होदु णाम, सजोगत्तादो। जे पुण द्विदा तेसिं जीवपदेसाणं णत्थि कम्मबंधो, जोगाभावादो । सो वि कुदो णवदे १ जीवपदेसाणं परिप्फंदाभावादो। ण च परिप्फंदविरहियजीवपदेसेसु जोगो अत्थि, सिद्धाणं पि सजोगत्तावत्तीदो त्ति ? स्थित कर्मप्रदेशोंका भी अस्थितपना नहीं बनता और इसलिए सब जीवप्रदेश किसी भी समय अस्थित होते हैं, यह सूत्रवचन घटित नहीं होता ?
___ समाधान-यह कोई दोष नहीं हैं, क्योंकि, जीवके उन आठ मध्य प्रदेशोंको छोड़कर शेष जीवप्रदेशोंका आश्रय करके इस सूत्रकी प्रवृत्ति हुई है।
शंका-इस अर्थविशेषकी उपलब्धि किस प्रकारसे होती है ? समाधान-उसकी उपलब्धि 'स्यात्' शब्दके प्रयोगसे होती है । उक्त वेदना कथंचित् स्थित-अस्थित है ॥ ३ ॥
व्याधि, वेदना एवं भय आदिक क्लेशोंसे रहित छद्मस्थके किन्हीं जीवप्रदेशोंका चूँ कि संचार नहीं होता अतएव उनमें स्थित कर्मप्रदेश भी स्थित ही होते हैं। तथा उसी छद्मस्थके किन्हीं जीव
कि संचार पाया जाता है. अतएव उनमें स्थित कर्मप्रदेश भी संचारको प्राप्त होते हैं. इसलिये वे अस्थित कहे जाते हैं । यतः उन दोनोंके समुदाय स्वरूप वेदना एक है अतः वह स्थितअस्थित इन दो स्वभाववाली कही जाती है।
शंका-इनमें जो जीवप्रदेश अस्थित हैं उनके कर्मबन्ध भले ही हो, क्योंकि, वे योग सहित हैं। किन्तु जो जीवप्रदेश स्थित हैं उनके कर्मबन्धका होना सम्भव नहीं है, क्योंकि, वे योगसे रहित हैं।
प्रतिशंका-वह भी किस प्रामणसे जान जाता है।
प्रतिशंकाका समाधान-जीवप्रदेशोंका परिस्पन्द न होनेसे ही जाना जाता है कि वे योगसे रहित हैं। और परिस्पन्दसे रहित जीवप्रदेशोंमें योगकी सम्भावना नहीं है, क्योंकि, वैसा होनेपर सिद्ध जीवोंके भी सयोग होनेकी आपत्ति आती है।
१ अ-श्रा-काप्रतिषु 'अहिदा', ताप्रतौ 'अहि (हि)दा', मप्रतौ 'लद्धिदा' इति पाठः। २ ताप्रतो 'सजोगत्ता [दो] वत्तीदो' इति पाठः।
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