Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 374
________________ ४, २, १०, २८. ] वेयणमहाहियारे वेयणवेयणविहाणं [३४१ एवं छत्तीस भंगा [३६] । अधवा, अणेयाणं जीवाणं अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तेसिं चेव जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणं अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उवसंताओ, सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं सत्ततीस भंगा [३७] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तेसिं चेव जीवाणमणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंताओ', सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवमट्ठतीस भंगा [३८] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तेसिं चेव जीवाणमणे. याओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी अणेयसमयपबद्धा उवसंताओ; सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवमेक्कोणचालीस भंगा [३६] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तेसिं चेव जीवाणमणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तेसिं चे जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपत्रद्धाओ उवसंताओ; सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं चालीस भंगा [४०]। अधवा अणेयाणं जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तेसिं चेव जीवाणमणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, छत्तीस भंग हुए (३६)। अथवा, अनेक जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार सैंतीस भंग हुए ( ३७)। अथवा, अनेक जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त, कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनाएं हैं। इस प्रकार अड़तीस भंग हुए (३८)। अथवा, अनेक जीर्वोकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार उनतालीस भंग हए (३६)। अथवा अनेक जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उपशान्त, कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनामें हैं। इस प्रकार चालीस भंग हुए (४०)। अथवा, अनेक जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीण, १ प्रतिषु 'मेया० समय उव०' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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