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३४२] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २,१०,२९ तेसिं चेव जीवाणमणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उवसंताओ, सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उपसंताओ च वेयणाओ। एवमिगिदालीस भंगा [४१] ।
अधवा, एकतालीस भंगा एवं वा उप्पादेदव्या । तं जहा-एगजीवमस्सिदण एक्किस्से उदिण्णुच्चारणाए जदि तिण्णि उवसंतउच्चारणाओ लब्भंति तो तिण्णमुदिण्णुचारणाणं केत्तियाओ लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए' णव भंगा लभंति [ह] पुणो णाणाजीवे अस्सिदूण जदि एक्किस्से उदिण्णुच्चारणाए चत्तारि उवसंतुच्चारणाओ लभंति तो चदुण्णमुदिण्णुच्चारणाणं केत्तियाओ लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए सोलस भंगा लभंति १६] । पुणो एक्कस्स गाणाजीववज्झमाणभंगस्स जदि सोलस भंगा लब्भंति तो दोण्णं किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए बत्तीस भंगा उप्पज्जति [३२] । एत्थ पुव्विल्लणवभंगेसु पक्खित्तेसु बज्झमाणउदिण्ण-उवसंताण तिसंजोगम्मि अट्ठमसुत्तस्स इगिदालीसभंगा होति [४१] । एवं णेगमणयम्मि वज्झमाण-उदिण्ण-उवसंताणमेगसंजोग-दुसंओग-तिसंजोगेहि णाणावरणीयपरूवणा कदा ।
एवं सचण्णं कम्माणं ॥ २६ ॥
जहा णाणावरणीयस्स वेयणवेयणविहाणं णेगमणयस्स अहिप्पारण परूविदं तहा उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयों में बाँधी गई उपशान्त; कथंचित बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायों हैं । इस प्रकार इकतालीस भंग हुए (४१)।
अथवा, इकतालीस भंगोंको इस प्रकारसे उत्पन्न कराना चाहिये। यथा-एक जीवका आश्रय करके यदि एक उदीर्ण-उच्चारणामें तीन उपशान्त-उच्चारणायें पायी जाती हैं तो तीन उदीर्ण-उच्चारणाओंमें वे कितनी पायी जावेंगी, इस प्रकार प्रमाणसे फलगणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर नौ उपशान्त उच्चारणायों पायी जाती हैं (६)। पुनः नाना जीवोंका आश्रय करके यदि एक उदीर्ण उच्चारणामें चार उपशान्त-उच्चारणाों पायी जाती हैं तो चार उदीर्ण-उच्चारणाओंमें वे कितनी पायी जावेंगी, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करने पर सोलह भंग पाये जाते हैं (१६)। पुनः नाना जीवों सम्बन्धी एक बध्यमान भंगमें यदि सोलह भंग पाये जाते हैं तो दो बध्यमान भंगोंमें कितने भंग पाये जावेंगे, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करने पर बत्तीस भंग उत्पन्न होते हैं (३२)। इनमें पूर्वोक्त नौ भंगोंको मिलाने पर बध्यमान, उदीर्ण
और उपशान्त, इन तीनोंके संयोगसे आठवें सूत्र के इकतालीस भंग होते हैं (४१)। इस प्रकार नैगम नयकी अपेक्षा बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त; इनके एक, दो व तीनोंके संयोगसे ज्ञानावरणीयकी प्ररूपणा की गई हैं।
इसी प्रकार शेष सात कर्मों के वेदनावेदनविधानकी प्ररूपणा करनी चाहिये ॥२६॥ नैगम नयके अभिप्रायसे जिस प्रकार ज्ञानावरणीयके वेदनावेदनविधानकी प्ररूपणा की गई है
१ अ-आप्रत्योः 'अोवट्टिदाए ण लब्भंति' इति पाठः।
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