Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१११२१२॥
४, २, १०, ३७] वेयणमहाहियारे वेयणवेयणविहाणं
[३४६ मेगो भंगो [१] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, सिया बज्झमाणिया च' उदिण्णाओ च वेयणाओ [२] । एवं दुसंजोगविदियसुत्तस्स दो चेष भंगा।
सिया बज्झमाणिया च उवसंता च ॥३७॥
एदस्स बज्झमाण-उवसंताणं दुसंजोगपढमसुत्तस्सत्थे भण्णमाणे ताव बज्झमाणाणं उवसंताणं दुसंजोगसुत्तपत्थारं |१३] पुणो बज्झमाण-उवसंतजीव-पयडि-समयपत्थारं च
|१२|११२२ दृविय ११।१११ पच्छा एदस्स सुत्तस्स भंगपमाणपरूवणं कस्सामो। तं जहाएयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंता, सिया बज्झमाणिया च उवसंता च वेयणा । एवमेगो भंगो [१] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तेसिं अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बांधी गई बध्यमान, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति अनेक समयों में बाँधी गई उदीर्ण; कथंचित् बध्यमान और उदीर्ण वेदनायों हैं। इस प्रकार दोके संयोग रूप द्वितीय सूत्रके दो ही भंग हैं (२)।
कथंचित् बध्यमान (एक) और उपशान्त (एक वेदना है ॥ ३७॥ बध्यमान और उपशान्त इन दोके संयोग रूप प्रथम सूत्रके अर्थका कथन करते समय पहिले
व० उप० बध्यमान और उपशान्त इन दोके संयोग रूप सूत्रके प्रस्तार एक | एक | को तथा बध्यमान, उपशान्त,
| एक अनेक
बध्यमान
उपशान्त
जीव एक अनेक | एक एक अनेक अनेक जीव, प्रकृति और समय, इनके प्रस्तारको भी
प्रकृति एक एक | एक | एक एक एक
समय | एक एक | एक अनेक एक अनेक स्थापित करके पश्चात् इस सूत्रके भंगोंके प्रमाणकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान और उपशान्त वेदना है। इस प्रकार एक भंग हुआ (१)। अथवा,
१ अ-श्रा-काप्रतिषु 'बज्झमाणियाश्रो', ताप्रती 'बज्झमाणिया [ो]' इति पाठः।
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