Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, १०, २६.] वेयणमहाहियारे वेयणवेयणविहाणं
[३३१ तस्स चेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तस्स चेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया बज्झमाणिया च उदिण्णाओच उवसंताओ च वेयणाओ। एवमट्ट भंगा [८] । अधवा, एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्स चेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तस्स चेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया वज्झमाणिया च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं चउत्थसुत्तस्स णव भंगा [९] ।
सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णा च उवसंता च ॥ २५ ॥
एदस्स पंचमसुत्तस्स भंगपमाणपरूवर्ण वत्तइस्सामो। तं जहा-एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तस्स चेव जीवस्स एया. पयडी एयसमयपबद्धा उदिण्णा, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंता; सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णा च उवसंता च वेयणाओ। एवं पंचमसुत्तस्स एको चेव भंगो।
सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णा च उवसंताओ च ॥२६॥
एदस्स तिसंजोगछट्ठसुत्तस्स भंगपमाणं वुच्चदे । तं जहा-एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तस्सेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उदिण्णा, तस्सेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उवसंताओ; प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयों में बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण
और उपशान्त वेदनायें इस प्रकार आठ भंग हुए (८)। अथवा, एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवको अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयों में बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं । इस प्रकार चतुर्थ सूत्रके नौ भंग हैं (९)।
कथंचित् वध्यमान (अनेक ), उदीर्ण (एक) और उपशान्त (एक), वेदना है ॥ २५ ॥
___इस पाँचवें सूत्रकी भंगप्ररूपणाको कहते हैं। वह इस प्रकार है-एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् वध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदना है । इस प्रकार पाँचवें सूत्रका एक ही भंग है।
कथञ्चित् बब्यमान (अनेक), उदीर्ण (एक) और उपशान्त (अनेक) वेदनाएं हैं।२६॥ ___ इस त्रिसंयोगी छठवें सूत्र के भङ्गों का प्रमाण कहते हैं । यथा - एक जीव की अनेक प्रकृ. तियाँ एक समय में बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समय में बांधी गई उदीर्ण,
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