Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, १०, २८. ] वेयणमहाहियारे वेयणवेयणविहाणं
[३३५ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तस्स चेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एय. समयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ । एवमट्ट भंगा [८] । अधवा, एयस्स जीवस्त अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तस्स चेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तस्स चेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवमेय. जीवमस्तिदूण अट्ठमसुत्तस्स णव चेव भंगा होंति [९] ।
संपहि तस्सेव अट्ठमसुत्तस्स णाणाजीवे अस्सिदण बहुवयणभंगे वत्तइस्सामो। तं नहा-अणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणियाओ; तेसिं चेव जीवाणमेया पयडो एयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंताओ; सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं दस भंगा [१०] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमा. णियाओ, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी अणेयसमयपत्रद्धा उवसंताओ; सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवमेक्कारस भंगा [११] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेंया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणियाओ, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ । एवं बारह भंगा [१२] ।
जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उपशान्त, कथंचित् वध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें है। इस प्रकार आठ भंग हुए (८)। अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयों में बांधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार एक जीवका आश्रय करके आठवें सूत्रके नौ ही भंग होते हैं (९)।
अब नाना जीवोंका आश्रय करके उसी आठवें सूत्रके बहुवचन भंगोंको कहते हैं । यथाअनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उन्हों जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बांधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण, और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार दस भंग हुए (१०)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई वध्यमान, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनाये हैं। इस प्रकार ग्यारह भंग हुए (११)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् वध्यमान, उदीर्ण और उप
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